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श्रद्धालु श्रेणिक (बिंबसार)
(अनन्य शृद्धालु महापुरुष)
राजा बिचार शिकार खेलकर वनसे लौटे थे। उनका मन आज अत्यन्त खिन्न हो रहा था। अनक प्रयत्न करने पर भी भान उनके हाथ कोई शिकार नहीं लगा था । लौटते समय उन्होंने जैन साधुको खड़े देखा। अब वे अपने क्रोधको काबूमें नहीं रख सके । आज सबेरे शिकारको जाते समय भी उन्होंने इन्हीं साधुको देखा था। उन्होंने सोचा-इस नंगे साधुके दिखाई दे जाने के कारण ही पान मुझे शिकार नहीं मिला। वे बहुत झुंझलाए हुए थे। जंगलसे लौटते समय उसी स्थान पर साधुको निश्चल खड़े देखकर उनके हृदयमें बदला लेनेकी तीव्र इच्छा जाग्रत हो स्टी।
राजा किंवसारके अधिक क्रोधित होनेकी एक बात और दी। कल ही उनकी रानी चसनाने बौद्ध भिक्षुओंका परीक्षण किया था। परीक्षण में वे बुरी तरहसे पराजित और लजित हुए थे। उस परीक्षणसे रजा किंवसारका जैन-द्वेषी हृदय और भी भड़क उठा था। वे जैन साधुमात्रसे अत्यंत रुष्ट होगए थे और नौद्ध साधुओं के पराभवका बदम ह किसी वाह लेना महते थे।