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जैन युग-निर्माता ।
उनके इन सिद्धांतोंने विश्वमें अमरत्वका साम्राज्य स्थापित किया।
भगवान महावीरने साम्यभाव और विश्वप्रेमका शांतिपूर्ण साम्राज्य लाने के लिए महान् त्यागका अनुष्ठान किया। उन्होंने थपने जीवनके ३० वर्ष इस महान उपदेशमें वा दिए।
मानी आयुके अन्त समयमें वे विहार करते हुए पावापुरके उद्यानमें आए । वह कार्तिक कृष्णा अमावस्याका प्रभातकाल था । रात्रिकी कालिमा क्षीण होनेको थी। इसी पवित्र समयमें उन्होंने इस नश्वर संसारका त्याग कर निर्वाण प्राप्त किया। देवताओं और मनुष्यों के सामने एकत्रित होकर उनका निर्वाणोत्सव मनाया, उनके गुणों का कीर्तन किया और उनकी चरणरजको अपने मस्तकपर चढ़ाया।