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२७६] जैन युग-निर्माता। छिद्रको ढकनेवाले उन व्यक्तियोंसे शांति और साधना सदसों कोसा दूर भागती है । उनका अस्तित्व न रहना ही श्रेयस्कर है।
सुकुमाल तपस्वी बना नहीं था। अंतरकी उत्कट भात्म साधनाने उसे तपस्वी बना दिया था। यह संसारका भूखा वैरागी नहीं था वह तो तृप्त तपस्वी भा। उसकी मात्मा तपस्वी बननेके प्रथम ही अपने कर्तव्यको पहचान चुकी थी। वह जान गया था संसारके नम चित्रको।
रत्न दीपकोंके प्रकाशके अतिरिक्त दीप प्रकाशमें अश्रुपूर्ण हो नानेवाले अपने नेत्रोंकी निबेलताको वह सम्झता था कमल वासित सुगंधित चांवलों के अतिरिक्त साधारण तन्दुरूके म्बादको सहन न कर सकनेवाली अपनी जिहाकी तीव्रताका उसे अनुभव था । मखमली गद्दोंपर चलनेके अतिरिक्त पृथ्वीपर न चलनेवाले पैगेकी नुकमारताका उसे ज्ञान था । उसे अपने शरीर के अणु भणुका पता था । वह एक स्टेज पर उनको ला चुका था, अब उसे उन्हें दूसरी ओर ले जाना था। मन तो उसे उन्हींसे दूसरा दृश्य अंकित कराना था। अभी तो वह उनकी गुलामी कर चुका था। उसके इशारे पाच चुका था, सब सुकुमारके इशारे पर उनके नाचनेकी बारी थी . बहुत मजबूत कठोर उसे बनना था। वह बना । एक क्षण में ही दृश्य परिवर्तित हो गया । पलक मारते ही उसने अपने स्वामित्वको पहचान लिया, मानो यह कोई जादू था कड़ाकेकी दोहरीका समय, पाषाण कणमय पृथ्वी, उसके पैरोंसे रक्तकी धारा बहने लगी किन्तु उसे तो