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शीलवती सुदर्शन। [२५१ ओह ! मित्र भाप हैं ! कुछ नहीं, माब में बैठा बैठा कुछ यूं ही विचार कर रहा था।
मित्र उसके मनकी भावनाओंको कुरेदता हुआ भागे बोलानहीं, मालूम होता है माज भापके भोजनमें अवश्य ही काई समक्ष पदार्थ बागवा होगा । अथवा मापके साम्हने किसीने मणी पुगण भारम्भ कर दिया होगा सीसे पापका हरय........।
सुदर्शन अपने हृदयके वैगको स्थिर कर मित्रको आगे बढ़नेसे रोकता हुआ वोडा-" नहीं मित्र ! भाप इतनी भाषिक क्लानाएँ क्यों कर रहे हैं ? भाज ऐसी कोई बात नहीं हुई है, मैं पूर्ण बाथ हूं, बाप मुझे पान इस तरह क्यों बना रहे हैं!
मित्रने हंसी का फबाग छोड़ते हुए कहा-वाह मित्र ! खूब रहे उलटे चोर कोतवालको डांटे! आपने खूब कहा, मैं भापको बना रहा हूं या माप अपने मन का हाल छिग कर मुझे अंटसंट उत्तर देकर बना रहे हैं। लेकिन यह याद रखिए जाननेवालोंसे आप मनका हाल नहीं छिश सकते, छिनेकी आप कितनी ही कोशिश कीजिए सब बेकार होंगी, आपकी बखेिं तो माफ साफ उत्तर दे रही है कि भाज भाप किसी खास तरह की चिंतामें ग्रस्त हैं।
सुदर्शन कच्चा खिलाड़ी था। उसने प्रेमकी चौरहका पासा फेंकनेको अभी उठाया ही था । वह अपने मनकी उमड़ती भावनाओं को दगा नहीं सका। वह खुल कर बोला-मित्र ! सचमुच भाप मेरी अवस्थाको मान गए है, क्या करूं मनका मेद काल छिगने पर भी