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________________ ( ६१ ) अव नीचे श्री भगवन्तों की निर्वाण तिथियां वर्णन की जाती हैं यथाःतीर्थंकर देव निर्वाणकाल श्रीऋपभदेव जी माघ कृष्णा १३ , अजितनाथ जी चैत्र शुक्ला ५ ,, संभवनाथ जी चैत्र शुक्ला ५ ,, अभिनन्दन जी वैशाख शुक्ला ८ "सुमतिनाथ जी चैत्र शुक्ला ६ ,, पद्म प्रभु स्वामी मार्गशीर्ष कृष्णा ११ , सुपार्श्वनाथ जी फाल्गुन कृष्णा ७ , चन्द्रप्रभु जी भाद्रपद कृष्णा ७ , सुविधिनाथ जी भाद्रपद शुक्ला , शीतलनाथ जी वैशाख कृष्णा २ , श्रेयांस नाथ जी श्रावण कृष्णा ३ ., वासुपूज्य स्वामी आषाढ़ शुक्ला १४ ,विमलनाथ जी आषाढ़ कृष्णा ७ ., अनंतनाथ जी चैत्र शुक्ला ५ , धर्मनाथ जी ज्येष्ठशुक्ला ५ , शान्ति नाथ जी ज्येष्टकृष्णा १३ ,, कुंथुनाथ जी वैशाख कृष्णा १ , अरनाथ जी मार्गशीर्ष शुक्ला १० , मल्लिनाथ जी फाल्गुन शुक्ला १२ ,, मुनिसुव्रत स्वामी ज्येष्ठकृष्णा , नमिनाथ जी वैशाखकृष्णा १० , अरिष्टनेमि नाथ जी आषाढ़ शुक्ला , पार्श्वनाथ जी श्रावण शुक्ला , महावीर स्वामी जी कार्तिक कृष्णा १५ सो तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण ये पांचों ही कल्याण भव्य प्राणियों के लिये उपादेय हैं, और उक्त तिथियों में धर्म-ध्यान विशेष करना चाहिए क्योंकि-जव देव का पूर्णतया स्वरूप जान लिया गया तव आत्म-शुद्धि के लिये देव की उपासना तथा देव को 'ध्येय' स्वरूप मे रख कर आत्म-विशुद्धि अवश्यमेव करनी चाहिए। ॥ इति श्री जैनतत्त्वकलिकाविकासे देवस्वरूपवर्णनं नाम प्रथमा कलिका समाप्ता ॥
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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