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( ४० ) अतिशायिने भतुप्-इस जगत् का सव ऐश्वर्य और ज्ञान जिस परमात्मा को है उस परमात्मा का नाम भगवान् है।
११ जगत्प्रभुः-पु. जगतां प्रभुः जगत्प्रभुः-इस जगत् का स्वामी होने से ईश्वर का नाम जगत्प्रभु है।
१२ तीर्थकरः-पु. तीर्यते संसारसमुद्रोऽनेन इति, तीर्थ प्रवचनाधारश्चतुर्विध संघः तत् करोति इति तीर्थकरः-जिस करके संसार समुद्र तरिए उस तीर्थ को करने वाला होने से ईश्वर परमात्मा का नाम तीर्थकर है।
१३ तीर्थकर:-पु. तीर्थ करोतीति तीर्थकरः,-पूर्वोक्त संसारसमुद्र से तारने वाला तीर्थ का प्रवर्तक होने से ईश्वर परमात्मा का नाम तीर्थकर है।
१४ जिनेश्वरः-पु. रागादिजेतारो जिनाः केवलिनस्तेपामीश्वरः जिनेश्वर:-रागद्वेपादि महा कर्म शत्रुओं के जीतने वाले सामान्य केवली उन के भी ईश्वर होने से परमात्मा का नाम जिनेश्वर है।
१५ स्याद्वादी-पु. स्यादिति अव्ययमनकान्तवाचक, ततःस्यादिति अनेकान्तं वदतीत्येवं शीलः स्याद्वादी स्याद्वादोऽस्याऽस्तीति वास्याद्वादी यौगिकत्वादनेकान्तवादी इत्यपि पाठः,,-सकलवस्तुस्तोम अपने स्वरूप करके कथंचित् अस्ति है और परवस्तु के स्वरूप करके कथंचित् नास्ति रूप है, ऐसा तत्व प्रतिपादन करने वाला होने से ईश्वर का नाम स्याद्वादी है।
१६ अभयदः-पु. भयमिह परलोकादानाकस्मादाजीवमरणालाघाभेदेन सप्तधा एतत्प्रतिक्षतोऽभयं विशिएआत्मनः स्वास्थ्यं निःश्रेयसधर्मनिबंधन भूमिकाभूतं तत् गुणप्रकदचिंत्यशक्तियुक्तत्वात् सर्वथा परार्थकारित्वाद् ददाति इति अभयदः-संवथा अभय का देने वाला होने से ईश्वर का नाम अभयद है।
१७ सार्वः-पु. सर्वेभ्यः प्राणिभ्यो हितः सार्वः-सर्व प्राणियों के हितकारी होने से ईश्वर का नाम सार्व है।
१८ सर्वज्ञः-पु. सर्व जानातीति सर्वज्ञः-सर्व पदार्थों को अपने ज्ञान द्वारा जानने वाला होने से ईश्वर का नाम सर्वज्ञ है।।
१६ सर्वदर्शी-पु. सर्व पश्यतीत्येवंशीलः सर्वदर्शी-अपने अखंड ज्ञान द्वारा सर्व वस्तु को देखने का स्वभाव वाला होने से ईश्वर का नाम सर्वदर्शी है।
२० केवली-पु. सर्वथाऽऽवरणविलये स्वभावाविर्भावः केवलं तदस्यास्तीति केवली'-सर्व कर्म आवरण के दूर होने से चेतन स्वभाव का प्रकट होना केवल कहाता है उस केवल का धारक होने से परमात्मा का नाम केवली है।