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( ३०३ ) तथा अवेदी (अविकारी ) भी हैं। इस प्रकार मनुष्यगति के जीवों के दश परिणामों का वर्णन किया गया है। ____अब इसके अनन्तर व्यन्तर देव ज्योतिषी तथा वैमानिक देवों के परिणाम विषय कहते हैं
वाणमंतरा गतिपरिणामेणं देवगतिया जहा असुर कुमारा एवं जोइसियावि नवरं लेसापरिणामेणं तेउलेसा, वेमाणियावि एवं चेव नवरं लेसा परिणामेणं तेउलेसावि पम्हलेसावि सुकलेसावि सेतं जीवपरिणामे ।
भावार्थ-व्यन्तर देव गतिपरिणाम की अपेक्षा से देवगति परिणाम से परिणत हो रहे हैं । जिस प्रकार असुर, कुमार देवों का वर्णन पूर्व किया जा चुका है ठीक उसी प्रकार व्यन्तर और ज्योतिषी देवों के विषय में भी जानना चाहियेः भेद केवल इतना ही है कि-लेश्यापरिणाम के विषय केवल तेजोलेश्या जाननी चाहिये।
इसी प्रकार वैमानिक देवों के विषय में भी जानना चाहिये किन्तु विशेष इतना ही है कि-लेश्यापरिणाम की अपेक्षा से तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या से वे देव परिणत हो रहे हैं। सारांश इतना ही है कि--वैमानिक देव उक्त तीनों लेश्याओं के परिणाम से परिणत हो रहे हैं । शेष परिणामों का वर्णन प्राग्वत् है।
इस प्रकार दश प्रकार के परिणामों में जीव परिणत हो रहा है । अतएव जीव को परिणामी कहा गया है । द्रव्य से द्रव्यान्तर हो जाना ही परिणाम का प्रथम लक्षण वर्णन कर चुके हैं । पर्याय नय उसको उत्पाद और व्ययरूप से मानता है किन्तु द्रव्य को ध्रौव्य रूप से स्वीकार करता है। किन्तु द्रव्यार्थिक नय केवल द्रव्यको द्रव्यान्तर होना ही स्वीकार करता है।
सो इस प्रकार जीव परिणाम कथन करने के अनन्तर अव सूत्रकार अजीव परिणाम विषय में कहते हैं जैसेकि
अजीवपरिणामेणं भंते कातविधे प.१ गोयमा दसविधे पएणत्ते तजहावंधणपरिणामे गातपरिणामे संठाणपरिणामे भेदपरिणामे वएणपरिणाम गंधपरिणामे रसपरिणामे फासपरिणामे अगुरुयलहुयपरिणामे सद्दपरिणामे ।
भावार्थ हे भगवन् ! अजीव परिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम ! अजीवपरिणाम दश प्रकार से वर्णन किया गया है जैसेकिबंधनपरिणाम, गतिपरिणाम. संस्थानपरिणाम, भेदपरिणाम, वर्णपरिणाम, गंधपरिणाम, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम, अगुरुकलघुकपरिणाम, शब्दपरि