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________________ ( २८७) कतिविधेणं भंते परिणामे पन्नते ? गोयमा ! दुविहे परिणामे पन्नत्ते तंजहा जीव परिणामे य अजीव परिणामे य ॥१॥ __ अर्थ-श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से भगवान् गौतम खामी जो प्रश्न करते है कि हे भगवन् ! परिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया हे ? इस प्रश्न के उत्तर में श्री भगवान् वर्णन करते हैं कि हे गौतम ! परिणाम दो प्रकार से प्रतिपादनकिया गया है जैसे कि-जीव परिणाम और अजीव परिणाम । जीव परिणाम सप्रायोगिक और अजीव सवैश्रसिक होता है । मन, वचन, और काय द्वारा जब आत्मा पुद्गलों का आकर्षण करता है तव उसमें स्वयम् परिणत होजाता है । उसको प्रायोगिक परिणाम कहते हैं किन्तु जो पुद्गल स्वयमेव स्कन्धादि में परिणत होता रहता है उसको अजीव परिणाम कहते हैं । इस पद में सर्व वर्णन स्याद्वाद के श्राश्रित होकर किया गया है इस लिये पाठकों को स्याद्वाद का भी सहज में ही वोध हो सकेगा। __ अव जीव परिणाम के मुख्य २ भेदों के विषय पूछते हैं। जीव परिणामेणं भंते कतिविधे प. गोयमा ! दसविधे पन्नते, तंजहागतिपरिणामे इंदियपरिणामे कसायपरिणामे लेसापरिणामे जोगपरिणामे उवोगपरिणामे णाणपरिणामे दंसणपरिणामे चरित्तपरिणामे वेदपरिणामे ॥ अर्थ-हे भगवन् ! जीव परिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम ! जीव परिणाम दस प्रकार से प्रतिपादन किया गया है जैसेकिगति १ इंन्द्रिय २ कषाय ३ लेश्या ४ योग ५ उपयोग ६ ज्ञान ७ दर्शन ८ चारित्र और वेदपरिणाम १० । अर्थात् जव आत्मा अपने कर्मों द्वारा नरकादि गतियों में जाता है तव जीव गतिपरिणामयुक्त हो जाता है । अतएव सर्व भावों का अधिगम गतिपरिणाम के प्राप्त हुए विना प्राप्त नहीं हो सकता। . इसलिए शास्त्रकर्ता ने गतिपरिणाम सर्व परिणामों से प्रथम उपन्यस्त किया है। जव गतिपरिणाम से युक्त होगया तो फिर “इदंनादिन्दं, आत्मा ज्ञानलक्षण परमैश्वर्ययोगात् तस्येदमिन्दियभिति' ज्ञान लक्षण आत्मा इन्द्रियों में परिणत होने से इन्द्रिय परिणाम कथन किया गया है। इन्द्रियो द्वारा इष्टानिष्ट विषयों का सम्वन्ध होने से राग और द्वेष के परिणाम उत्पन्न हो जाते हैं। फिर कषाय परिणाम कथन किया गया है । सो कषाय परिणाम युक्त आत्मा लेश्या परिणाम वाता होता ही है अतः कषायानंतर लेश्या परिणाम कथन किया गया है। कारण कि-कष नाम संसार का है सो जो संसार चक्र मे आत्मा को परिभ्रमण करावे उसे ही कषाय कहते हैं ।
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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