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________________ ( १९२ ) है। इसी प्रकार प्रत्येक भागार में यही बात जान लेनी चाहिए । २ गणाभिोगेणं-गण-पंचायत की आज्ञा से कोई अनुचित काम करना पड़ जाय तो वह भी सम्यक्त्व को दूपित नही करता है। ३वलाभिओगेणं यदि कोई बलवान् अपने बल के जोर से कोई अनुचित काम करवाए तो वह भी सम्यक्त्व में दूषण नहीं होगा। ४ देवाभित्रोगेणं-किसी देव के कारण से कोई काम करना पड़ जाए तो तव भी सम्यक्त्व में दूषण नहीं होगा। ५गुरुनिग्गहेणं-माता पिता या गुरु ने किसी अयोग्य काम के करवाने के लिये हठ कर लिया हो और वह उनकी आज्ञानुसार करना पड़ जाए तव भी सम्यक्त्व में दूषण नहीं होगा। ६वित्तिकतारेणं-अकालादि (दुर्भिक्षादि) के समय आजीविका के लिये कोई धर्म-विरुद्ध काम करना पड़ जाए तव भी सम्यक्त्व में दूषण नहीं लगेगा । क्योंकि-"वित्तिकतारेण-ति वृत्ति--जिविका तस्या कान्तारम् अरण्यं तदिव कान्तारं क्षेत्रं कालो वा वृत्तिकान्तारं निर्वाहाभाव इत्यर्थः- इस कथन का आशय यह है कि-जव किसी प्रकार से भी निर्वाह न चल सकता हो तव उस समय कोई अनुचित काम करना पड़ जाए तो सम्यक्त्व रत्न निर्दोष ही रहेगा। ___उपरोक्त सव आगार (संकेत) आपत्तिकाल के लिये ही प्रतिपादन किये गए है । इस प्रकार जव सम्यक्त्व रत्न ठीक प्रकार से धारण किया जाए तव श्रमणोपासक के जो १२ व्रत कथन किये गए हैं, उनको यथाशक्ति द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को देख कर धारण करना चाहिए। अतएव अब १२ व्रतों का स्वरूप संक्षेप से लिखा जाता है। थूलाओ पाणाईवायाओ वेरमणं ठाणागसूत्रस्थान ५ उद्देश ॥ १ ॥ इस सूत्र का यह आशय है कि कर्मों के कारण संसार के चक्र में दो प्रकार के जीव वर्णन किए गये हैं। जैसेकि-सूच्म १ और स्थूल २। पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति आदि स्थावर जीव सून्म कथन किये गए हैं। जिन का गृहस्थ से सर्वथा त्याग नहीं हो सकता तदपि उन का विवेक अवश्य होना चाहिए । अतएव शास्त्रकार ने पहिले ही 'स्थूल' शब्द ग्रहण किया है। यद्यपि-पांच स्थावरों के भी शास्त्रकारों ने सूक्ष्म और वादर (स्थूल) दो भेद कर दिये हैं तथापि त्रस आत्माओं की अपेक्षा वे सर्व सूक्ष्म ही कहे जाते हैं। सो इस स्थान पर स्थूल शब्द का अर्थ त्रस जीवों से सम्बन्ध रखता है । अस आत्मा चार प्रकार से प्रतिपादन किए गए हैं, जैसेकि द्वीद्रिय जीव
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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