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चाहिए | क्योंकि वे कहते हैं कि अतिपरिचयादवज्ञा भवति विशिष्टेऽपि वस्तुनि प्राय । लोक. प्रयागवामी कूपे स्नान सदा कुरुते "१" इस श्लोक का यह भाव है कि अतिपरिचय होने से जो विशिष्ट वस्तु होती है इस का भी अपमान होजाता है, जिस प्रकार प्रयाग तीर्थ में रहने वाले लोग कूप में ही सदा स्नान किया करते हैं । यह कथन सामान्यतया कथन किया गया है किन्तु ज्ञानादि से जो वृद्ध, हैं उन की सदैव काल संगति करनी चाहिए । हां यह ठीक है कि-व्यभिचारी पुरुष की संगति विशेषतया त्याज्य है । फिर धर्म-श्रवण में प्रयत्नशील होना चाहिए । असत्य हठ कदापि न हो, श्रपितु गुणों में पक्षपात होना चाहिए, नतु किसी व्यक्ति में। क्योंकि जो पुरुष गुणों को छोड़कर किसी व्यक्ति गत पक्षपात में फंस जाता है, वह कभी भी जय प्राप्त नहीं कर सकता । श्रतएव गुणों का पक्षपात सदा जय करने वाला होता है
ये सब क्रियाएँ तब ही होसकेंगी जब शारीरिक स्वस्थता बनी रहेगी, क्योंकि यावन्मात्र सांसारिक वा धार्मिक क्रियाएँ हैं, वे सब शारीरिक दशा के ठीक रहने पर ही साधन की जासकती हैं। जैसे लिखा है किवेग-व्यायाम-स्वाप - स्नान - भोजन - स्वछन्दवृत्तिकालान्नो परुन्ध्यात्
नीतिवाक्यामृतदिवसानुष्ठान समुद्देस २५ सू- १० ॥ ) भावार्थ - इस सूत्र का मन्तव्य यह है कि भले ही सैकड़ों कारण उपस्थित होजाएँ, परन्तु सूत्र कथित ६ शिक्षाओं का समय श्रतिक्रम न करना चाहिए, जैसेकि—वेग-व्यायाम – स्वाप - स्नान - भोजन और स्वछन्द्रवृत्ति । कारण कि यदि मलमूत्रादि के वेग को रोका जायगा तो शरीर में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होने की संभावना होगी। कहा भी गया है कि- "शुक्रमलमूत्रमरुद्वेगसँराघेऽश्मरीमगदगुल्मार्शसां हेतुः” शुक्र, मल, मूत्र, मरुद्वैग के निरोध करने से अस्मरी ( बबासीर ) भगंदर गुल्मार्शल आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं । यह बात स्वतः बुद्धिसिद्ध है कि--जब अशुद्ध मल मूत्र का वेग रुक जायगा, तब उस के दुर्गन्धमय परमाणु शरीर में अनेक व्यथाएँ उत्पन्न करदेंगे । जिस प्रकार मल मूत्र के वेग का निरोध करने से शारीरिक दशा बिगड़ जाती है, ठीक उसी प्रकार व्याग्राम के न करने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। खूब पेट भर कर भोजन खालिया और सारा दिन शय्या पर लेटे लेटे व्यतीत कर दिया तो फिर भला रोग न उत्पन्न होगा तो और होगा भी क्या ? इस लिये व्यायाम की अत्यन्त आवश्यकता है ।
" शरीरायासजननी क्रिया व्यायाम "
शरीर को कष्ट देने वाली क्रिया का नाम व्यायाम है |
" शस्त्रवाहनाभ्यासेन व्यायाम सफलयेत्”