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________________ यदि एक गुरु के शिष्यों का परिवार विस्तृत होगया हो, तो उसे कुल कहते हैं फिर उनका जो परस्पर सम्बन्ध है, वा गच्छ समूहात्मक है, उसका धर्म अर्थात् समाचार जो है उसी का नाम कुलधर्म है । उस धर्म को ठीक पालन करने के लिए जो नियमों को निर्माण करना है यही कुलस्थविरों का कर्तव्य है । कुलस्थविर सदैव काल इसी बात के विचार में रहें, जिस से कुलधर्म भली प्रकार से चलता रहे। जिस प्रकार लौकिक कुलधर्म में यदि कोई त्रुटि आगई हो तो उसे कुलस्थविर दूर करते हैं, इसी प्रकार यदि धार्मिक कुलधर्म में कोई व्यक्ति स्वच्छन्दवृत्ति होगया है, तो धार्मिक कुलस्थविर उस त्रटि को दूर करने की चेष्टा करें साथ ही इस प्रकार की नियमावली निर्माण करें, जिस से कुलधर्म अच्छी प्रकार चलता रहे । जैसेकि-कुलसमाचार, परस्पर वन्दना, व्यवहारसूत्र, अर्थप्रदान, उपधान, तप, स्वाध्याय, ध्यान, व्युत्सर्ग इत्यादि क्रियाएँ जो कुल में चली आती हों वे उसी प्रकार चलती रहें, इस प्रकार के धर्म के प्रवर्तक कुल स्थविर ही होते हैं। ६ गणधर्म-अनेक कुलों का जो समूह है, उनका जो परस्पर सम्बन्ध है उस सम्बन्ध की व्यवस्था ठीक प्रकार से हो रही है तो उस को गणधर्म कहते हैं । यद्यपि गण शब्द समूह का वाची है तथापि रूढि से यह शब्द अनेक स्थानों में व्यवहृत हो रहा है। प्राचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के पाठ से निश्चित होता है कि-पहिले समय में गणधर्म का अति प्रचार था। क्योंकि वहां जिस स्थान पर जोराजाओं की गणना आती है उस स्थान पर साथ ही यह पद पढ़ा गया है कि-"गणराज" जो गण की सम्मति से राजा हुआ हो, उसे गणराज कहते हैं अर्थात् जिस प्रकार आज कल अमेरीकादि देशों में "गणराज' पद की स्थापना की जाती है उसी प्रकार पूर्व काल में दाक्षिणात्य भारत में भी बहुत से व्यक्ति गणराज पदारूढ़ होते थे । जैसेकि-निरयावली सूत्र में लिखा है कि-नवमल्ली जाति के राजे और नवलच्छी जाति के राजे काशी और कोशल देश पर गणराज करते थे । प्रजा की सम्मतिपूर्वक उन व्यक्तियों को राजसिंहासनारूढ किया जाता था, फिर वे नियत समय तक प्रजा शासन करते थे, और उनकी आज्ञा प्रजा सम्यक्तया पालन करती थी । परन्तु वह श्राज्ञा नियत समय तक ही रहती थी। गणराज प्रजा की सम्मति से इस प्रकार होते थे, जिस प्रकार आजकल मेम्बर चुने जाते हैं । तथा जब हम इस से छोटे पक्ष में आते हैं, तव गणराज एक छोटे से देश में पाते हैं, जैसेकि-जो छोटे २ कुलों का एक समूह होता है उसी को गण कहते हैं, फिर सव की सम्मति से जो उस गण का नेता चुना जाए उसी का नाम गणराज पड़ता है, जिसे आजकल लोग प्रधान (प्रेजीडेण्ट) कहते
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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