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( १०८ ) के साथ मधुर भाषण करना चाहिए क्योंकि मृदु भाषा से ही आत्माको वहत सी शांति मिल जाती है १ यदि गुरु आदिके शरीर की सेवा करने का कभी समय उपस्थित हो जाये तो अनुकूलरीति से करे जिससे किसी भी शारीरिक अंगोपांग को क्षति न पहुंचे और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त हो अर्थात जिस प्रकार उनके शरीरको सुख प्राप्त हो उसी विधिस सेवा करे । एवं संवाहनादि क्रियाएं भी उसी प्रकार करे जिस प्रकार उनको शांति प्रतीत हो २ सेवा करते समय किसी प्रकार का हठ वा मिथ्याभमान न होना चाहिए अर्थात जिस कार्य विषय गुरु ने नियुक्त किया है उस कार्य को सरलतापूर्वक करे । हठ वा मिथ्यानिवेश यह कृत्य नितान्त वर्जनीय है ४ । इसको सहायताविनय कहते हैं । इस कथन से यह भी सिद्ध होता है कि -यदि सेवा के अन्य अंग न ग्रहण किये जासके तो विनय का प्रथम अङ्ग मृदु भाषा तो अवश्य ग्रहण करे क्योंकि- मृदु भापा के उच्चारण करने से दुखित आत्माओं के वहुत सारे दुखों का नाश हो जाता है। जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में वृक्ष फल नहीं देसकता किन्तु उस समय उस की छाया उष्णता से पीड़ित व्यक्ति को सुखकारक बन जाती है उसी प्रकार मृदु भाषा दु:खित जीव को भी सुखी कर देती है।
इसके अनन्तर अब सूत्रकार वर्णसंज्वलनता विषय कहते है:
सेकित बएणसंजलणया? वएणसंजलणया चउव्विहा पएणत्ता तंजहाअहातचाणं वाया भवइ १ अवएणवायं पडिहणित्ता भवइ २ वरणवायं अणुवुहित्ता भवइ ३ आयवुड्ढसेवियावि भवइ ४ सेतं वरण संजलणया ॥
अर्थ- (प्रश्न) वर्ण संज्वलनताविनय किसे कहते है और कितने भेदहें ? (उत्तर) वर्णसंज्वलनता विनय चार प्रकार से प्रतिपादन की गई है जैसेकियथार्थ गुणानुवाद करना १ जो अवर्णवादी है उसका निराकरण करना २ जो वर्णवादी है उसे धन्यवाद और उसके गुणों का प्रकारा करना ३ जो गुणों मे अपने से अत्यन्त वृद्ध हैं उनकी सेवा करना ४ ॥ इसीका नाम वर्णसंज्वलनता है।
साराश-सहायता विनय के अनन्तर शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया किहे भगवन् ! वर्णसज्वलनता किसे कहते हैं और उसके कितने भेद हैं ? इसके उत्तर में गुरु ने प्रतिपादन किया कि-हे शिष्य ! प्राचार्य का यशोगान करना इसे वर्णसंज्वलनता विनय कहते हैं और उसके चार भेद है जैसे कि- आचायोदि के यथार्थगुणों की प्रशंसा करना अर्थात् यशोकीर्ति विस्तृत करना १ जो व्यक्ति प्राचार्य वा श्रीसंघादि की निंदा करते हैं उनकी निन्दा प्रतिहनन करना ।