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भवइ निरणत्तंगच्छड़ तंजहा - श्रायारविणणं १ सुयविणणं २ विखेवणा विणएणं ३ दोसग्निवायणाविणणं ॥४॥
अर्थ-आचार्य स्वकीय शिष्यको यह वच्यमाण चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति सिखाकर निर्ऋण होजाता है जैसेकि - - श्राचार विनय श्रुतविनय २ विक्षेपणा विनय ३ दोषनिर्घातना विनय ४ ॥
साराश- इस सूत्र का यह मन्तव्य है कि - श्राचार्य अपने शिष्य को चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति ( आचारण) सिखलाकर निॠण हो क्योंकि - जिस प्रकार पुत्रको धार्मिक और विद्वान् वनाना माता पिताका कर्तव्य है उसी प्रकार आचार्य का यह मुख्य कर्तव्य है कि अपने शिष्यको चार प्रकार की विनय की आचरणता खिलाकर निर्कण हो । इस कथन से यह भी सिद्ध होता है कि यदि आचार्य शिष्यको विनय शिक्षा नहीं देगा तो फिर वह शिष्य का ऋणी रहेगा इसी वास् सूत्रकार ने यह शब्द देदिया है कि चार प्रकार की विनय शिक्षा देकर श्राचार्य ऋणमुक्त हो सकता है यथा : - श्राचार विनय १ श्रुतविनय २ विक्षेपणा विनय ३ दोषनिर्घातना विनय ४ प्रथम श्राचार विनय इसलिये कथन किया गया है कि- आचरण की शुद्धि हो जाने पर ही श्रुतादि विनय सफलता को प्राप्त हो सकती है। यदि सदाचार से रहित है तो फिर उसके श्रुतादि विनय भी कांतिहीन होकर लोक में उपहास का कारण वन जाते हैं तथा सदाचार से हीन व्यक्ति को फिर अपनी प्रतिष्ठादिके भंग के भय से श्रुतादिकी भी अविनय करनी पड़ती है अब सूत्रकार प्रथम आचार विनय के भेदों विषय कहते हैं:-- किंत यार वि श्रयारविणए चउच्चिहा पण्णत्ता तंजहा - संजम सामायरियावि भवइ १ तवसामायरियावि भवइ २ गणसामायरियावि भवड़ ३ एकल्लविहार सामायरियावि भवइ ४ सेतं श्रायारविराय ॥ १ ॥
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अर्थ - (प्रश्न ) हे भगवन् ! श्राचार विनय किसे कहते हैं ? हे शिष्य ! चार विनय चार प्रकार से प्रतिपादन किया गया है संयम समाचारी का ज्ञान प्राप्त करना १ तप समाचारी के ज्ञान को प्राप्त करना २ गण समाचारी की योग्यता प्राप्त करना ३ और एकत्व विहारी के गुणों का वोध प्राप्त करना ४ | यह श्राचार विनय के भेद हैं ।
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( उत्तर ) जैसे कि -
साराश-शिष्य ने प्रश्न किया कि हे भगवन् ! आचार विनय किसे कहते हैं और उसके कितने भेद प्रतिपादन किये गयें हैं ? गुरु ने उत्तर में कहा कि हे शिष्य ! स्वयं शुद्ध आचार का पालन करना और अन्य आत्माओं के आचार को ठीक करना इसी का नाम आचार विनय है परन्तु इस के मुख्य चार भेद है