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( ७८ ) ऋजुसूत्रनयो वस्तु नातीत नाप्यनागतम्
मन्यते केवलं किन्तु वर्तमानं तथा निजम् ॥११॥ टीका-ऋजुसूत्रनयस्तु ऋजु सरलं वर्तमानं सूत्रयति संकल्पयति इति ऋजुसूत्रः स चासो नयश्च नातीतमतीतः पूर्वानुभूतपर्यायस्तं वस्तुतया न मन्यते तस्य विनष्टत्वाद्. नापि अनागतं भविप्यभावं तस्याद्याप्यनुत्पन्नत्वात् , किन्तु केवलमेकं वर्तमानपर्यायं तथा निजं स्वकीयं च भावं वस्तुतया मन्यते कार्यकारित्वात् ॥११॥
भा०--ऋजुसूत्र नय पदार्थ के वर्तमान काल के पर्याय को ही स्वीकार करता है। क्योंकि उस का मन्तव्य है कि-जो पदार्थ का भूत पर्याय हो चुका है, वह तो नष्ट हो चुका है, और जो उस पदार्थ का भविष्य में पर्याय उत्पन्न होने वाला है, वह अभी तक अनुत्पन्न दशा में है । अतएव जो वर्तमान काल में उस पदार्थ का पर्याय विद्यमान है, वही कार्य-साधक माना जासकता है। इसलिये सिद्ध हुआ कि-वर्तमान काल के पर्याय को ही ग्रहण करना चाहिये। अब उक्त ही विषय में फिर कहते हैं
अतीतेनानागतेन परकीयेन वस्तुना
न कार्यसिद्धिरित्येतदसद्गगनपद्मवत् ॥१२॥ टीका-कस्मादेवमित्यत आह । अतीतो विगतो भावस्तेन अनागतो भविष्यमाणो यो भावस्तेनापि परकीयो यथा सामान्यनरस्य पूर्वतनो वा भविष्यत् पुत्रजीवोऽधुना राजपुत्रत्वं प्राप्तः परं सः परकीयस्तेन वस्तुना जिनः कार्यसिद्धिर्नोक्ता इति कृत्वा एतदतीतानागतपरकीयपर्यायरूप वस्तु गगनपनवदाकाशारविन्दवदसदविद्यमानं मन्यते ॥१२॥
भा.--जो अतीत काल के भाव हैं, वे विनष्ट हो चुके हैं, और जो भाविष्य काल के हैं, वे वर्तमान काल में अनुत्पन्न हैं । अतएव जो वर्तमान काल का पर्याय विद्यमान है, वही कार्य साधक हो सकता है, क्योंकि-जैसे किसी का पुत्र पूर्वावस्था में राज्यपद प्राप्त कर चुका हो परन्तु वर्तमान काल में वह राज्यपद से च्युत हो चुका है. अतएव उसकी पूर्वराज्यावस्था वर्तमान काल में कार्य-साधक नहीं हो सकती तथा जो भविष्यत् काल में किसी व्यक्ति को राज्यावस्था की प्राप्ति की संभावना हो तो भी वह राज्यावस्था वर्तमान काल में कार्य साधक नहीं है अतएव वर्तमान काल के विना भूत और भविष्य अवस्था आकाश के पुष्प सदृश ही मानी जासकती है। फिर उक्त ही विषय में कहते हैं
नामादिषु चतुर्वेषु भावमेव च मन्यते । न नामस्थापनाद्रव्यारायेवमग्रेतना अपि ॥ १३ ॥