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________________ जैन-संस्कृति का राजमार्ग बनाते हैं। इन विकासोन्मुखी परिस्थितियों का जैन शास्त्रो मे बड़ी ही सुन्दर रीति से विवेचन किया गया है। यहाँ मैं आप लोगो को थोडा उपालम दूं कि पाप ऊँचा-से-ऊंचा व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, बी० ए०, एम० ए० या डॉक्टर आदि बन जाते हैं किन्तु प्रात्मविकासक ज्ञान सीखने की ओर खास ध्यान नहीं देते । कोरे अर्जन करने की कला सीखते हैं, पर अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की कला से अगर बिलकुल अनभिज्ञ रह गये तो पाप ही सोचिये कि जीवन को सफल बनाने के लिए केवल अन्धकार आपकी कैसी सहायता कर सकेगा। आज आप लोगो का कर्तव्य है कि जैन सिद्धान्तो की सूक्ष्मता को स्वयं समझे, मनन करे और उन्हे नवीन रूप मे जगत् के सामने रखें। सिद्धान्तो के इस तरह के अत्यल्प प्रचार को देखकर मुझे दुःख होता है कि पाप जैन विद्वानो के समक्ष भी जैन सिद्धान्तों का प्रारभिक रूप मुझे बताना पडे । मैं प्राशा करूं कि वर्तमान प्रशान्त अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियो मे जैन सिद्धान्तो का वास्तविक मूल्याकन कर उन्हे ठीक रूप में प्रचारित करने का लक्ष्य बनाया जायगा। मेरे सामने काफी अजैन विद्वान् भी बैठे हुए हैं और मेरा उनसे भी यही कथन है कि अब साम्प्रदायिकता का वह युग नहीं, अब तो शुद्ध सैद्धान्तिक भूमि पर विभिन्न दर्शनो के विभिन्न सिद्धान्तो को गम्भीरतापूर्वक समझना चाहिए और उनमे से जिन सिद्धान्तो द्वारा व्यापक सर्वहित सम्पादित करना सभव दीख पडे, उन्हे प्रसारित व प्रचारित करने में अपना योग देना चाहिए । 'हस्तिना ताड्यमानोऽपि न गच्छेज्जैनमन्दिरम्' जैसी जहरीली वातो का तो आज कोई भी सभ्य श्रादमी चर्चा तक नहीं कर सकता । सत्य चाहे जहाँ मिले, जिज्ञासु वहीं चला ही जायगा। अपना ही सत्य पौर दूसरो का सब असत्य-ऐसी मनोवृत्ति को फैला कर अपने अनुयायियो को विस्तृत ज्ञान सम्पादन से रोकना भी मैं तो अपनी ही कमजोरी का एक कारण समझता हूँ। हां तो जैन शास्त्रो का विषय परिचय कराने के लिए इन्हे चार भागो मे विभक्त किया जा सकता है १. प्रथम-प्रथमानुयोग या धर्मकयानुयोग
SR No.010275
Book TitleJain Sanskruti ka Rajmarg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshlal Acharya, Shantichand Mehta
PublisherGanesh Smruti Granthmala Bikaner
Publication Year1964
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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