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शास्त्रों के चार अनुयोग
२. द्वितीय-गणितानुयोग | ३ तृतीय-चरणकररणानुयोग ४. चतुर्थ-द्रव्यानुयोग
अनुयोग का अर्थ है व्याख्यान या विवेचन । जैन समाज का कोई भी सम्प्रदाय हो, उनके समस्त ग्रन्यो मे इन्हीं विषय प्रणालियो से विवेचन किया गया है, क्योकि सारे साम्प्रदायिक भेद तो भगवान महावीर के भी अनेक वर्षों के बाद उत्पन्न हुए हैं ।
प्रथमानुयोग का अर्थ कथा-साहित्य के व्याख्यान से है। जैनग्रन्थो मे तात्त्विक एव विकासकारी बातो को समझाने के लिए स्थान-स्थान पर कपात्रो का उल्लेख किया गया है । कथाओ की प्रणाली ही सिद्धान्तों को इतना लोकप्रिय बना सकी है, क्योकि इसके द्वारा उक्त सिद्धान्त की जानकारी प्रत्यन्त ज्ञान व समझ वाले को भी आसानी से कराई जा सकती है। इसलिए जन-शास्त्रो से कयायो द्वारा प्रात्मा, परमात्मा, पुण्य, पाप, बन्ध, मोक्ष प्रादि गूढ तत्वो का भी ज्ञान बडी सरलतापूर्वक हो जाता है। दूसरे कथाम्रो की प्रणाली मे एक तरह की सरसता व प्रेरणाशीलता भी होती है। महापुरुषो को जीवगाथानो से जीवन मे सन्मार्ग पर प्रवृत्त होने की एक वलवती प्रेरणा मिलती है। उनके जीवन के उत्थान-पतन के संघर्ष और प्रगति की निष्ठा कथानो के रूप मे श्रोता के हृदय पर अत्यधिक प्रभाव छोडती है। इस तरह हमारे शास्त्रीय दृष्टान्त पतन मे जागरण व उत्थान मे विचारणा प्रदान करते है ।
जैन धर्म का कथा-साहित्य, जो कि वास्तव मे साहित्यिक क्षेत्र मे अभी तक पूर्ण रूप से प्रकाश मे नही लाया गया है, विश्व के कथा-साहित्य में अनुपम है। जैन-कथानक की यह सबसे बडी विशेषता रही है कि इनमे पणार्य व प्रादर्श का मिश्रित स्प का इस सुन्दरता से चित्रण किया गया है कि पाठक को पतन से जागृत करते हुए इसमे उसे विकास का प्रेरणास्रोत मिलता है। कथानक कही भी असगत व अस्वाभाविक नही होता। अधिकतर धार्मिक काथानको मे काफी प्रत्युक्तियां व काल्पनिक वर्णन पाया