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जैन पूजांजलि
निज तत्वोपलब्धि के बिन सम्यक्त्व नहीं होता । सम्यक्त्वोपलब्धि के बिन सिद्धत्व नहीं होता ॥ वृषभ चिह्न शोभित चरण ऋषभदेव उर धार। मन वच तन जो पूजते वे होते भव पार ॥
इत्याशीर्वादः ४ जाप्य ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय नमः ।
श्री पद्मप्रभ जिन पूजन जय जय पद्म जिनेश पद्मप्रभ पावन पद्माकर परमेश । वीतराग सर्वज्ञ हितंकर पद्मनाथ प्रभु पूज्य महेश ॥ भवदुख हर्ता मंगलकर्ता षष्टम तीर्थङ्कर पद्मश । हरो अमंगल प्रभु अनादि का पूजन का है यह उद्देश ।।
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री पदमप्रभ जिनेन्द्राय अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । शुद्ध भाव का धवल नीर लेकर जिन चरणों में पाऊँ । जन्म मरण की व्याधि मिटाऊँ नाचू गाऊँ हर्षाऊँ ॥ परम पूज्य पावन परमेश्वर पनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिवपद पाऊँ । ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम्
निर्वपामीति स्वाहा । शुद्ध भाव का शीतल चंदन ले प्रभु चरणों में पाऊँ । भव प्राताप व्याधि को नाशं नाचूं गाऊँ हर्षाऊँ । परम० ___ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनम् नि । शुद्ध भाव के उज्ज्वल अक्षत ले जिन चरणों में आऊँ। अक्षय पद अखंड मैं पाऊँ नाचूं गाऊँ हर्षाऊं ॥ परम०
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताये अक्षतम् नि ।