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जैन पूजांजलि
जड़ को जड़ समझो बिन चेतन ज्ञान नहीं होता।
पूर्ण शुद्धता हुए बिना कल्याण नहीं होता। शुद्ध भाव के पुष्प सुरभिमय ले प्रभु चरणों में पाऊँ । कामवाण को व्याधि नशाऊँ नाचूं गाऊँ हर्षाऊ ॥ परम० ___ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय कामवाण विघ्वंसनाय पुष्पम् नि । शुद्ध भाव के पावन चरु लेकर प्रभु चरणों में आऊँ । क्षुधा व्याधि का बीज मिटाऊँ नाचूँ गाऊँ हर्षाऊँ । परम० ___ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय क्षधारोग विनाशनाय नवद्यम नि । शुद्ध भाव को ज्ञान ज्योति लेकर प्रभु चरणों में आऊँ। मोहनीय भ्रम तिमिर नशाऊँ नाचूं गाऊँ हर्षांऊ ॥ परम०
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपम् नि । शुद्ध भाव को धूप सुगंधित ले प्रभु चरणों में आऊँ । अष्टकर्म विध्वंस करूं मैं नाचूं गाऊँ हर्षाऊँ ॥ परम० __ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अप्ट कर्म दहनाय धूपम् नि० स्वाहा । शुद्ध भाव सम्यक्त्व सुफल पाने प्रभु चरणों में आऊँ। शिवमय महामोक्ष फल पाऊँ नाचूं गाऊँ हर्षांऊँ ॥ परम०
ॐ ह्री श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्ताये फलम् नि० स्वाहा । शुद्ध भाव का अर्घ अष्टविध ले प्रभु चरणों में पाऊँ । शाश्वत निज अनर्घ पद पाऊँ नाचूं गाऊ हर्षाऊ ॥ परम० ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्ताये अर्घम् नि० म्वाहा ।
श्री पंच कल्याणक शदिन माघ कृष्ण षष्ठी को मात सुसीमा हर्षाए । उपरिम अवेयक विमान प्रीतिकर तज उर में आए । नव बारह योजन नगरी रच रत्न इन्द्रने बरसाए । जयश्री पद्मनाथ तीर्थङ्कर जगती ने मंगल गाए ॥ ॐ ह्रीं माघ कृष्ण षष्ठी दिने गर्भा गम मंगल प्राप्ताये थी पद्मप्रभ
जिनेन्द्राय अर्घम् नि० स्वाहा ।