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जन पूजांजलि
आत्म भ्रान्ति के महारोग की औषधि है यथार्थ श्रद्धान । सम्यक् दर्शन के बिन होता कभी न जीवों का कल्याण ॥
पाँच सहस्र अरु छः सौ सोलह प्रतिमानों को करूं प्रणाम । धनुष पांच सो पद्मासन अरिहन्त देव मुद्रा अभिराम ॥ अष्टान्हिका पर्व में इन्द्रादिक सुर जा करते पूजन । भाव सहित जिन प्रतिमा दर्शन से होता सम्यक् दर्शन ॥
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे द्वि पंवाशज्जिनालयस्थ जिन प्रतिमा अत्र अवतर अवतह संवौषट् ।
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वोपे द्वि पच.ज्जिनालयस्थ जिन प्रतिमा अत्र निष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्री नन्दोश्वर द्वीपे द्वि पंचाशज्जिनालयस्थ जिन प्रतिमा अत्र मम् सनिहितो त्रव भव बपट् । समकित जल को पावन धारा निज उर अन्तर में लाऊँ। मिथ्या भ्रम को धूल हटाऊ निज स्वरूप को चमकाऊँ ॥ नन्दीश्वर के बावन जिन चैत्यालय बन्दू हर्षाऊ । अष्टम द्वीप मनोरम जिन प्रतिमायें पूजू सुख पाऊँ ।
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे पूर्व पश्चिमोत्तर दक्षिण दिशासुद्वि पंचाश जिनालयस्थ जिन प्रतिमाभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीनि स्वाहा । क्षमा भाव का शुचिमय चन्दन उर अन्तर में भर लाऊँ। क्रोध कषाय नष्ट करके मैं शान्ति सिन्धु प्रभु बन जाऊँ नन्दी० ___ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे द्वि पंचाश जिनालयस्थ जिन प्रतिमाभ्यो भवताप विनाशनाय चन्दनम् नि० स्वाहा । मार्दव भाव परम उपकारी भाव पूर्ण प्रक्षत लाऊं। मान, कषाय नष्ट करके मैं शुद्धातम के गुण गाऊं ॥ नन्दी०
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वी द्विपे पंचाशज्जिनालयस्थ जिन प्रतिमाभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् नि. स्वाहा ।