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जैन पूजांजलि
तत्वज्ञान पूर्वक निजात्मा का यथार्थ श्रद्धान करो । तत्वज्ञान कर महामोक्ष मंगल पथ पर अभियान करो ||
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शुद्ध आर्जव भाव पुष्ष से सजा हृदय को मैं श्राऊ । सर्वनाश माया कषाय का करू सरलता को पाऊँ ॥ नन्दी०
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीप द्वि पंवाशज्जिनालयस्य जिन प्रतिमाभ्यो कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि० स्वाह् । । सत्य, शौच मय भाव भक्ति नैवेद्य हृदय में भर लाऊँ । लोभ कषाय नाश करने को सन्तोषामृत पी जाऊ ॥ नन्दी ० ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीप द्वि पंच शज्जिनालयस्थ जिन प्रतिमाभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि० स्वाहा । द्रव्य भाव संयम तप ज्योति जगा आतम में रम जाऊँ । मैं अनादि प्रज्ञान नाश कर सम्यक् ज्ञान रत्न पाऊँ ॥ नन्दी ० ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीप द्वि पंचाशञ्जिनालयस्थ जिन प्रतिमाभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि० स्वाहा । त्याग भाव आकिंचन पाऊ शुद्ध स्वभाव धूप लाऊँ । पर विभाव परणति को क्षय कर निज पररगति वैभव पाऊँ ॥ नन्दी ० ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीप द्वि पंचाशज्जिनालयश्थ जिन प्रतिमाभ्यो अष्ट कर्म विध्वंसनाय धूपम् नि० स्वाहा । ब्रह्मचर्य का फल पाने को रत्नत्रय पथ पर श्राऊँ । निज स्वरूप में चर्या करके महा मोक्ष फल को पाऊँ ॥ नन्दी ० ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीप द्वि पंचाशज्जिनालयस्थ जिन प्रतिमाभ्यां मोक्ष फल प्राप्तये फलम् fTo ० स्वाहा । संबर और निर्जरा द्वारा कर्म रहित मैं हो जाऊँ ॥ आश्रव बंध नाश कर स्वामी मैं श्रनधं नन्दीश्वर के बावन जिन चैत्यालय भ्रष्टम द्वीप मनोरम जिन प्रतिमायें पूजूं सुख
पदवी पाऊँ ॥
बन्दू
हर्षाऊँ ।
पाऊँ ॥
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे पूर्व पश्चिमोत्तर दश्चिमोत्तर दक्षिण दिशा द्वि पंचाशज्जिनालयस्थ जिन प्रतिमाभ्यो अनर्घ पद प्राप्तये अर्धम् नि० ।