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जैन पूजांजलि
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पुण्य कर्म का पक्षपात अज्ञानी जन को होता है । शुद्ध भाव का अवलंबन तो ज्ञानी जन को होता है।
एक एक में बिम्ब एक सौ आठ विराजित हैं मनहर । आठ सहस्त्र छः सौ चालिस हैं श्री प्रहन मूति सुन्दर ॥ धनुष पांच सौ पद्मासन हैं गूज रहा है जय जय गान । नृत्य वाद्य गीतों से झंकृत दसों दिशायें महिमावान ॥ तीर्थकर के जन्मोत्सव की सदा गूञ्जती जय जयकार । धन्य धन्य श्री जिन शासन की महिमा जग में अपरम्पार॥ नहीं शक्ति हममें जाने की यहीं भाव पूजन करते। पुष्पाञ्जलि व्रत की महिमा से भव भव के पातक हरते॥ पंचमेरु की पूजा करके निज स्वभाव में आ जाऊँ । भेद ज्ञान को नवल ज्योति से सम्यक् दर्शन प्रगटाऊँ ॥ सम्यक् ज्ञान चरित्र धार मुनिबन स्वरूप में रम जाऊँ । वसु कर्मो का सर्वनाश कर सिद्ध शिला पर जम जाऊँ ॥
ॐ ह्रीं ढाई द्वीप सम्बन्धी सुदर्शन, विजय, अचल, मन्दिर विद्युन्माली पंचमेरु सम्बन्धी अस्सी जिन चैत्यालयस्थ जिन विम्बेभ्यो पूर्णाघम् नि ।
पंचमेरु जिन धाम की महिमा अगम अपार । पुष्पांजलि व्रत जो करें हो जायें भव पार ।।
५ इत्याशीर्वादः 8 ॐ ह्रीं श्री पंचमेरु जिन चैत्यालयेभ्यो नम.
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श्री नन्दीश्वर द्वीप पूजन अष्टम द्वीप श्री नन्दीश्वर आगम में वर्णित पावन । चार दिशा में तेरह तेरह जिन चैत्यालय हैं बावन ॥ एक एक में बिम्ब एक सौ पाठ रतनमय है अति भव्य । प्रातिहार्य हैं प्रष्ट मनोहर पाठ पाठ हैं मङ्गल द्रव्य ॥
जाप्य