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जैन पूजांजलि
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मिथ्यातम के जाए बिन, सच्ची सुख शान्ति नहीं होती।
सम्यक् दर्शन हो जाने पर, फिर भव भ्रान्ति नहीं होती। शीतल चंदन ताप मिटाता, किन्तु नहीं मिटता भव ताप । निज स्वभाव का चंदन दो प्रभु मिटे राग का सब सन्ताप ॥प्रजर
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन् संसार ताप विनाशनाय च दनं नि । उलझा हूं संसार चक्र में कैसे इससे हो उद्धार । अक्षय तन्दुल रत्नत्रय दो हो जाऊँ भव सागर पार ॥ अजर...
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन् अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान नि० । काम ब्यथा से मैं घायल हूँ कैसे करूं काम मद नाश । विमल दृष्टि दो ज्ञान पुष्प दो काम भाव हो पूर्ण विनाश ॥जर ___ ॐ ह्रीं गमों सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन् काम, वाण विध्वंसनाय पुष्पं नि. । क्षुधा रोग के कारण मेरा तृप्त नहीं हो पाया मन । शुद्ध भाव नैवेद्य मुझे दो सफल करूं प्रभु यह जीवन ॥ अजर अमर अविकल अविकारी, अविनाशी अनन्त गुण धाम । नित्य निरंजन भव दुख भंजन ज्ञान स्वभावी सिद्ध प्रणाम ॥ ___ॐ ह्रीं णमो सिद्धाण सिद्ध परमेष्ठिन् क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् । मोह रूप मिथ्यात महातम अन्तर में छाया घनघोर । ज्ञान दीप प्रज्वलित करो प्रभु प्रकटे समकित रवि का भोर ॥अजर. ___ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्टिन् मोहान्धकार विनाशनाय दीपं । कर्म शत्रु निज सुख के घाता इनको कैसे नष्ट करूं । शुद्ध धूप दो ध्यान अग्नि में इन्हें जला भव कष्ट हरू ॥ अजर. ___ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन् अष्ट कर्म विध्वंशनाय.धूपम् निः । निज चैतन्य स्वरूप न जाना कैसे निज में प्राऊंगा। भेद ज्ञान फल दो हे स्वामी स्वयं मोक्ष फल पाऊँगा ॥ अजर...
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन् मोक्ष फल प्राप्तये फलम् । नि. ।