________________
जैन पूांजलि
[१९६
सिंह विचरता है जिस पथ में उस पर हिरण नहीं जाते ।
सिंह वृत्ति से शरवोर मुनि मोक्ष मार्ग को अपन ते ।। शत्रुन्जय पर पाठ कोटि मुनियों के चरणाम्बुज नंदू । भोम युधिष्ठर अर्जुन पांडव और द्रविड़ राजा नंद ॥ श्री गजपंथ शैल पर मैं बलभद्र सप्त के पद जदू। पाठ कोटि मुनि मुक्तिगए हैं भाव सहित उनको नंद। सोनागिरि पर नंग अनंग कुमार आदि मुनि को नं। साढ़े पांच कोटि ऋषियों को यह निर्वाण भूमि नंदू॥ रेवातट पर गवण के सुत आदि मुनिश्वर को नंदू । साढ़े पाँच कोटि मुनियों को सादर सविनय अभिनंदू ॥ पावागढ़ पर साढ़े पांच कोटि मुनियों के पद नंदू। रामचन्द्रसुत लव, मदनांकुश, लाड़देव के नृप नंदू ॥ तारंगा गिरि साढ़े तीन कोटि मुनियों को मैं नंद। श्री वरदत्तराय मनिसागर दत्त आदि पद अभिनंदू॥ श्री सिद्धवर कूट सनत, मघवा चको दोनों बंदू । कामदेव दस प्रादि ऋषीश्वर साढ़े तीन कोटि नंदू ॥ मुक्तागिरि से साढ़े तीन कोटि मुनि मोक्ष गए नंद। पावागिरि पर सुवर्ण भद्र आदिक चारों मुनि को नंद ॥ कोटि शिला से एक कोटि मुनि सिद्ध हुये उनको वंदं । देश कलिंग यशोधर नृप के पाँच शतक सुत मुनि वंदू ॥ श्री चूलगिरि इन्द्रजीत अरु कुम्भकरण ऋषिबर वन्दं । कुन्थलगिरि पर श्री देश भूषण कुलभूषण मुनि वन्दूँ ॥ रेशंदोगिरि वरदत्तादि पंच ऋषियों को मैं वन्दूं । द्रोणागिरि पर गुरुदत्तादिक मुनियों को सविनय वन्दूँ ॥ पंच पहाड़ी राजगृही से मुक्त हुए मुनिवर वन्दूँ। चरम केवली जम्बू स्वामी मथुरा मुक्ति भूमि वन्दूँ ॥