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जैन पूजांजलि
विपरीत मान्यताओ में रह मैने अपार भव दुख पाया । मोहो के बंधन में बंदी रहकर न कभी कुछ सुख पाया ।
8 जयपाला तीर्थङ्कर ऋषि आदिमुनि गए जहां निर्वाण ।
उन क्षेत्रों को वंद्यकर करूं प्रात्म कल्याण ॥ जंबू द्वीप घात को खंड अरु पुरकरार्ध में क्षेत्र विदेह । पंच भरत अरु पंच ऐरावत तीर्थ क्षेत्र वंदू धरनेह ॥ तीनलोक के सकल तीर्थ निर्वाण क्षेत्र सविनय बंदू । सिद्ध अनंतानंत विराजित सिद्ध शिला नित प्रतिवंदू ॥ प्रष्टापद कैलाश शिखर पर ऋषभदेव के पद वंदू । बालि महा बालि मुनि नाग कुमार आदि मुनिवर वंदू॥ श्री सम्मेद शिखर पर्वत पर बीस तीर्थङ्कर वंदूं। प्रजितनाथ संभव, अनिनंदन, सुमति, पद्म प्रभु को वंदू॥ जो सुपार्श्व, चंदा प्रभु स्वामी, पुष्पदंत, शोतलवंदू। भु श्रेयांस, विमल, अनंत जिन, धम,शांति, कुन्थु वंदूं। रह, महिल, मुनिसुव्रत, नमिजिन, पश्र्वनाथ प्रभाको वंदू। नि अनंत निर्वाण गए जो, उनके चरणाम्बुज गई। पापुर में वासु पूज्य तीर्थङ्कर को सादर गई। ॥ मंदार गिरी से मुक्त हुए मुनियों के पद चंदू ॥ तो गिरनार नेमि प्रभु शंबु प्रदुम्न अनिरुद्ध आदिवंदू । कोटि बहात्तर सात शतक मुनि मुक्त हुए उनको बंदूं। वापुर में महावीर अंतिम तीर्थङ्कर को गं। त्र गुणावा गौतम स्वामी के पद कमलों को गंद॥ गोगिरि श्री रामचन्द्र,हनुमान गवय, गवाम गंदूं । हानील, सुग्रीव, नील मुनि निन्यानवे कोटि नंदू ॥