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जन पूजांजलि
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ज्ञान ज्योति क्रीड़ा करती है प्रति पल केवलज्ञान से । ज्ञान कला विकसित होती है सहज स्वयं के भान से ॥
काम व्यथा संहारक स्वामी आदिनाथ प्रभु को वंदन। मैं कंदर्प दर्प हरने को सहज पुष्प करता अर्पण ॥ ऋषभ० ___ ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि। क्षुधा रोग के नाशक स्वामी प्रादिनाथ प्रभु को वंदन । अब अनादि की क्षुधा मिटाऊं प्रभु नैवेद्य करू अर्पण ॥ ऋषभ ___ ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनायनैवेद्यम् नि०। स्वपर प्रकाशक ज्ञान ज्योतिमय आदिनाथ प्रभु को वंदन । मोह तिमिर प्रज्ञान हटाने दीपक चरणों में प्रर्पण ॥ ऋषभ० ___ ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि० । कर्म व्यथा के नाशक स्वामी प्रादिनाथ प्रभु को वंदन । अष्ट कर्म बिध्वंस हेतु भावों को धूप करूँ अर्पण ॥ ऋषभ० ___ ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय अप्ट कर्म दहनाय धूपम् नि० । नित्य निरंजन महामोक्ष पति आदिनाथ प्रभु को वंदन । मोक्ष सुफल पाने को स्वामी चरणों में फल है अर्पण ॥ ऋषभ० ___ ॐ ह्री श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय मोक्ष फल प्राप्ताय फलम् नि० । जल गंधाक्षत पुष्प सुचर दीपक सुधूप फल अर्घ सुमन । पद अनर्घ पाने को स्वामी चरणों में सादर अर्पण ।। ऋषभदेवके चरण कमल में मन वच काया सहित प्रणाम । भक्तामर स्तोत्र पाठ कर मैं पाऊँ निज में विश्राम ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ्यम् नि० ।
४ जयमाला वृषमांकित जिनराज पद वंदू बारम्बार । वषभदेव परमात्मा परम सौख्य आधार ॥