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________________ १७२] जैन पूजांजलि निज स्वभाव शिव सूख का दाता । पर विभाव निज सख का घाता ।। श्री भक्तामर स्तोत्र पूजन जय जयति जय स्तोत्र भक्तामर परम सुख कारणम् । जय ऋषभदेव जिनेन्द्र जय जय जय भवोदधितारणम् ॥ जय वीतराग महान जिनपति विश्ववंद्य महेश्वरम् । जय आदि देव सु महादेव सुपूज्य प्रभु परमेश्वरम् ॥ जय ज्ञान सूर्य अनंत गुणपति आदिनाथ जिनेश्वरन् । जय मानतुंग सुनीश पूजित प्रथम जिन तीर्थेश्वरम् ॥ मैं भाव पूर्वक करूं पूजन स्वपद ज्ञान प्रकाशकम् । दो भेद ज्ञान महान अनुपम प्रष्ट कर्म विनाशनम् ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्र अत्र मम् सन्निहितो भवभव वषट् । जन्म मरण भयहारी स्वामी, आदि नाथ प्रभु को वंदन । त्रिविध दोष ज्वर हरने को, चरणों में चल करता अर्पण ॥ ऋषभदेव के चरण कमल में, मन वच काया सहित प्रणाम। भक्तामर स्तोत्र पाठ कर, मैं पाऊँ निज में विश्राम ॥ ___ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वामीति स्वाहा । भव प्राताप विनाशक स्वामी आदिनाथ प्रभु को वंदन । भवदावानल शीतल करने चंदन करता हूं अर्पण ॥ ऋषभ ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय संसार ताप विनाशनाय चन्दनम् नि । भव समुद्र उद्धारक स्वामी आदिनाथ प्रभु को वन्दन । अक्षय पद की प्राप्ति हेतु प्रभु अक्षत करता हूं अर्पण ॥ ऋषभ० ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् नि।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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