________________
१५० ]
जैन पूजजलि
पूर्ण अहिसा व्रत संयम की जब निश्चय बांसुरी बजेगी । मोह क्षोभ की गति क्षय होगी शुद्धातम निज साज सजेगी ॥
इससे अब तो हम चेतें श्री वीर जयन्ती आई । सूमण्डल के जीवों को नूतन सन्देशा लाई ॥ चेतो चेतो हे वीरो अब समय नहीं सोने का श्रालस्य मोह निद्रा में अवसर है ना खोने का ॥ कर्तव्य धर्म मय पालो अरु त्यागो कर्म निरर्थक | तब वीर जयन्ति मनाना होगा अति अनुपम सार्थक ॥ श्री वर्धमान सन्मति को प्रतिवीर वीर को वन्दन । है महावीर स्वामी का प्रति विनय भाव से अर्चन ॥ श्राशीर्वाद दो हे प्रभु हम द्रव्य दृष्टि बन जायें । रागादि भाव को जय कर परमात्म परम पद पायें | ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम जन्म मङ्गल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय पूर्णाम् निर्वपामीति स्वाहा ।
वीर जयन्ती दे रही शुभ सन्देश महान । प्रारिण मात्र से प्रेम कर करो श्रात्म कल्याण ॥ XXX इत्याशीर्वादः Xx
ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः ।
जाप्य
-
श्री अक्षय तृतीया पूजन अक्षय तृतिया पर्व दान का ऋषभ देव ने दान नृप श्रेयांस दान वाता थे, जगती ने यशगान अहो दान की महिमा, तीथंङ्कर भी लेते हाथ होते पंचाश्चर्य पुण्य का भरता है प्रपूर्व भण्डार ॥ मोक्ष मार्ग के महाव्रती को, भाव सहित जो देते दान | निज स्वरूप जप वह पाते हैं निश्चित शाश्वत पद निर्वाण ॥
पसार ।
लिया ।
किया ॥