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जैन पूजांजलि
सफल हुआ सम्यक्त्व पराक्रम छाया भेद ज्ञान अनुपम । अतरवंद नष्ट होते ही क्षीण हो गया मिथ्यातम ।।
विविध भांति के सुर तर फल प्रभु परम भावना मय लाऊं। महा मोक्ष फल पाऊँ स्वामी फिर न लौट भव में पाऊँ ॥ महा०
ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम, जन्म मङ्गल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय मोक्ष फल प्राप्तये फलम निर्वपामोति स्वाहा । जल फलादि वसु द्रव्य अर्घ शुभ ज्ञान भाव का ही लाऊं। साम्य भाव चारित्र धर्म पा निज अनर्घ पदवी पाऊं ॥ महावीर के जन्म दिवस पर महावीर प्रभु को ध्याऊँ। महावीर के पथ पर चल कर महावीर सम बन जाऊँ ॥ ___ॐ ह्रीं श्री चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम, जन्म मङ्गल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
(जयमाला) जन्म दिवस श्री वीर का गाओ मङ्गल गान ।
आत्म ज्ञान को शक्ति से होता मोक्ष कल्याण ॥ इस अखिल विश्व में जब प्रभु हिंसा का राज्य रहा था। तब सत्य शान्ति सुख लय कर पापों का स्रोत बहा था। ले प्रोट धर्म को पापी प्रन्याय पाप करते प्रति । वे धर्म बताते थे "वैदिक हिंसा हिंसा न भवति" ॥ पशु बलि, जन बलि, यज्ञों में होती थी जब प्रति भारी। "त्री शौद्रनाधीयताम्" का प्राधिपत्य था भारी ॥ जगती तल पर होता था हिंसा का तांडव नर्तन । उत्पीड़ित विश्व प्रा लख पापों का मीषण गर्जन ॥ जब जग ने त्राहि त्राहि को अरु पृथ्वी कांपी थर थर। तब दिव्य ज्योति दिखलाई प्राशा के नभ मण्डल पर ॥