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जैन पूजांजलि
[१४ में एक शुद्ध चैतन्य मूर्ति शाश्वत ध्र व ज्ञायक हूँ अनूप।
निर्मलानंद अविकारी हूँ' अविचल हूँ ज्ञानानन्द रूप ॥ मलयागिरि चन्दन से उत्तम गन्ध स्वयं की प्रगटाऊँ। निज स्वभाव साधन से स्वामी शाश्वत शीतलता पाऊँ ॥महा०
ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम् जन्म मङ्गल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। शुभ्र अखण्डित धवलाक्षत ले भाव सहित प्रभु गुण गाऊँ। निज स्वरूप की महिमा गाऊं नुपम अक्षय पद पाऊँ ॥महा०
ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम जन्म मङ्गल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा। कल्प वृक्ष के पुष्प मनोहर भावमयी लेकर आऊँ । पर परणति से विमुख बनूं निष्काम नाथ मैं बन जाऊँ॥ महा. ___ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम जन्म मङ्गल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामोति स्वाहा। षट रस मय नैवेद्य अनूठे भाव पूर्ण लेकर पाऊँ । निज परणति में रमण करूं मैं पूर्ण तप्त प्रभु बन जाऊं ॥महा० ___ॐ ह्रीं चैत्र शुक्न त्रयोदश्याम जन्म मङ्गल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। स्वर्ण थाल में रत्न दीप निज मावों का लेकर पाऊं। केवल ज्ञान प्रकाश सूर्य को ज्योति किरण निज प्रगटाऊं ॥ महा०
ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम् जन्म मङ्गल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। दश गन्धों की दिव्य धूप में शुद्ध भाव को ही लाऊँ। वश धर्मों की परम शक्ति से प्रष्ट कर्म रज विघटाऊँ ।महा०
ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम जन्म मङ्गल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अष्ट कर्म दहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।