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जैन पूजांजलि
परम पूज्य भगवान आत्मा है अनंतगुण से परिपूर्ण ।
अंतरमुखाकार होते ही हो जाते सब कर्म विचूर्ण ।। केवल ज्ञान प्राप्त होने पर तीस वर्ष तक किया विहार । कोटि कोटि जीवों का प्रभु ने दे उपदेश किया उपकार ।। पावापुर उद्यान पधारे योग निरोध किया साकार । गुणस्थान चौदह को तजकर पहुंचे भव समुद्र के पार ॥ सिद्ध शिला पर हुए विराजित मिली मोक्ष लक्ष्मी सुखकार । जल थल नभ में देवों द्वारा गूज उठी प्रभु की जयकार ।। इन्द्रादिक सुर हर्षित आये मन में धारे मोद प्रपार । महामोक्ष कल्याण मनाया अखिल विश्व को मङ्गलकार ॥ अष्टादश गण राज्यों के राजानों ने जयगान किया । नत मस्तक होकर जन जन ने महावीर गुणगान किया ॥ तन कपूरवत उड़ा शेष नख केश रहे इस भू तल पर । माया मयी शरीर रचा देवों ने क्षण भर के भीतर ॥ अग्नि कुमार सुरों ने झुक मुकुटानल से तन भस्म किया। सर्व उपस्थित जन समूह सुरगण ने पुण्य अपार लिया । कार्तिक कृष्ण प्रमावस्या का दिवस मनोहर सुखकर था। उषाकाल का उजियारा कुछ तम मिश्रित अति मनहर था। रत्न ज्योतियों का प्रकाश कर देवों ने मङ्गल गाये । रत्न दीप को प्रावलियों से पर्व वीपमाला लाये ॥ सबने शोष चढ़ाई भस्मी पद्म सरोवर बना वहाँ । वही भूमि है अनुपम सुन्दर जल मन्दिर है बना जहां ॥ इसी दिवस गौतम स्वामी को सन्ध्या केवल ज्ञान हुआ । केवल ज्ञान लक्ष्मी पाई पद सर्वज्ञ महान हुआ ॥ प्रभु के ग्यारह गणधर में थे प्रमुख श्री गौतम स्वामी । क्षपक श्रेरिण चढ़ शुक्ल ध्यान से हुए देव अन्तर्यामी ।