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जैन पूजांजलि
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व्याकुल मत हो मेरे मनवा कट जाएगी दुख की रात । दिन के बाद रात आती है और रात के बाद प्रभात ॥
देवों ने प्रति हर्षित होकर रत्न ज्योति का किया प्रकाश । हुई दीपमाला द्विगुणित प्रानन्द हुआ छाया उल्लास ॥ प्रभु के चरणाम्बुज दर्शन कर हो जाता मन अति पावन । परम पूज्य निर्वाण भूमि शुभ पावापुर है मन भावन ॥ अखिल जगत में दीपावलि त्योहार मनाया जाता है। महावीर निर्वाण महोत्सव धूम मचाता प्राता है। हे प्रभु महावीर जिन स्वामी गुण अनन्त के हो धामी। भरत क्षेत्र के अन्तिम तीर्थङ्कर जिनराज विश्वनामी ॥ मेरी केवल एक विनय है मोक्ष लक्ष्मी मुझे मिले। भौतिक लक्ष्मी के चक्कर में मेरी श्रद्धा नहीं हिले ॥ भव भव जन्म मरण के चक्कर मैंने पाये हैं इतने । जितने रजकण इस भूतल पर पाये हैं प्रभु दुख उतने ॥ अवसर प्राज अपूर्व मिला है शरण आपको पाई है। भेद ज्ञान की बात सुनी है तो निज की सुधि आई है। अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा जब तक मोक्ष नहीं पाऊँ। दो आशीर्वाद हे स्वामी नित्य नये मङ्गल गाऊं ॥
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम् निर्वाण कल्याणक प्राप्ताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय पूर्णार्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
दीपमालिका पर्व पर महावीर उर धार । भाव सहित जो पूजते पाते सौख्य अपार ॥
卐 इत्याशीर्वाद ॐ ह्रीं श्री वर्धमान परम सिद्ध भ्यो नमः ।
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जाप्य