________________
जैन पूजांजलि
[१४३
निज स्वभाव का साधन लेकर लो शुद्धात्म शरण ।
गुण अनंतपति, बनो सिद्धयति करके मुक्ति वरण ।। मेरु सुदर्शन पाण्डुक वन में सुरपति ने कर प्रभु अभिषेक । नृत्य वाद्य मङ्गल गीतों के द्वारा किया हर्ष अतिरेक ॥ __ ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ला त्रयोदश्याम जन्म मङ्गल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अर्घम निर्वपामीति स्वाहा । मगसिर कृष्णा दशमी को उर में छाया वैराग्य अपार । लौकान्तिक देवों के द्वारा धन्य धन्य प्रभु जय जयकार ॥ बाल ब्रम्हचारी गुलधारी वीर प्रभू ने किया प्रयाण । वन में जाकर दीक्षा धारी निज में लीन हुए भगवान ॥
ॐ ह्रीं मगसिर कृष्ण दशम्पाम् तपो मङ्गल प्राप्ताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। द्वादश वर्ष तपस्या करके पाया तुमने केवल ज्ञान । कर बैसाख शुक्ल दशमो को वेसठ कर्म प्रकृति अवसान ॥ सर्व द्रव्य गुण पर्यायों को युगपत एक समय में जान । वर्धमान सर्वज्ञ हुए प्रभु वीतराग अरिहन्त महान ॥
ॐ ह्रीं वैशाख शुक्ल दशम्याम् केवल ज्ञान मङ्गल प्राप्ताय श्री वर्षमान जिनेन्द्राय अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा । कार्तिक कृष्ण प्रमावस्या की वर्धमान प्रभु मुक्त हुए । सादि अनन्त समाधि प्राप्त कर मुक्ति रमा से युक्त हुए । अन्तिम शुक्ल ध्यान के द्वारा कर प्रघातिया का अवसान । शेष प्रकृति पच्चासी को भी क्षय करके पाया निर्वाण ॥
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम मोक्ष मङ्गल मण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामोति स्वाहा ।
जयमाला महावीर ने पावापुर से मोक्ष लक्ष्मी पाई थी। इन्द्र सुरों ने हषित होकर दीपावली मनाई थी ॥