________________
१४२]
जैन पूजांजलि
पाप तिमिर का पुन्ज नाश कर ज्ञान ज्योति जयवंत हुई।
नित्य शुद्ध अविरुद्ध शक्ति के द्वारा महिमावंत हुई ॥ पुण्य भाव की धूप जलाकर घाति अघाति कर्म हर लू। क्रोध मान माया लोभादिक मोह द्रोह सब क्षय कर लू ।दीपा०
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम, मोक्ष मङ्गल मण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अप्ट कर्म विध्वंसनाय घूपम् निर्वपामीति स्वाहा । अमिट अनन्त अचल अविनश्वर श्रेष्ठ मोक्ष पद उर घरलू। अष्ट स्वगुण से युक्त सिद्ध गति पा सिद्धत्व प्राप्त करनदीपा० __ॐ ह्री कार्तिक कृष्ण अमावस्याम, मोक्ष मङ्गल मण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय मोक्ष फल प्राप्तये फलम निर्वपामीति स्वाहा । गुण अनन्त प्रगटाऊँ अपने निज अनर्घ पद को वर लू । शुद्ध स्वभावी ज्ञान प्रभावी निज सौन्दर्य प्रगट कर लू॥ दीपावलि के पुण्य दिवस पर वर्धमान पूजन कर लूं। महावीर प्रतिवीर वीर सन्मति प्रभु को वन्दन कर लू॥
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम, मोक्ष फल मङ्गल मण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ्यम निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री पंच कल्याणक शुभ आषाढ़ शुक्ल षष्ठी को पुष्पोत्तर तज प्रभु आये। माता त्रिशला धन्य हो गई सोलह सपने दरशाये ॥ पन्द्रह मास रत्न बरसे कुण्डलपुर में प्रानन्द हुआ। वर्धमान के गर्मोत्सव पर दूर शोक दुख द्वन्द हुआ ॥
ॐ ह्रीं आषाढ़ शुक्ला षष्ठयाम, गर्भ मङ्गल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अयम, निर्वपामीति स्वाहा । चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को सारी जगती धन्य हुई। सप सिद्धार्थराज हर्षाये कुण्डलपुरी अनन्य हुई ॥