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जैन पूजांजलि
चेतन आज संजोलो उर में पावन दीपावलियाँ ।
भेदज्ञान विज्ञान पूर्वक नाशो कर्मावलियां ॥ ११"जोवादि सद्दहणं सम्मत्तं" पाऊँ प्रभु करूं प्रणाम । इन चरणों को पूजन का फल पाऊँ सिद्ध पुरी का धाम ।। ॐ ह्रीं श्री कुन्द कुन्द आचार्य देवाय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ्यम् ।
कुन्द कुन्द मुनि के वचन भाव सहित उरधार । निज प्रातम जो ध्यावते पाते ज्ञान अपार ॥
४ इत्यार्शीवाद: जाप्य- ॐ ह्रीं श्री कुन्द कुन्दाचार्य देवाय नमः ।
श्री क्षमावणी पूजन क्षमावणी का पर्व सुपावन देता जीवों को सन्देश । उत्तम क्षमा धर्म को धारो जो अतिभव्य जीव का वेश ॥ मोह नींद से जागो चेतन प्रब त्यागो मिथ्याभिनिवेश । द्रव्य दृष्टि बन निज स्वभाव से चलो शीघ्र सिद्धों के देश ॥ क्षमा मार्दव प्रार्जव संयम शौच सत्य को अपनायो। त्याग, तपस्या, प्राकिंचन, व्रत ब्रह्मचर्य मय हो जाओ। एक धर्म का सार यही है समता मय ही बन जाओ। सब जीवों पर क्षमा भाव रख स्वयं क्षमा मय हो जाओ। क्षमा धर्म को महिमा अनुपम क्षमा धर्म हो जग में सार । तीन लोक में गूज रही है क्षमावणी की जय जयकार ॥ ज्ञाता दृष्टा हो समग्र को देखो उत्तम निर्मल भेष । रागों से विरक्त हो जाओ रहे न दुख का किंचित लेश ।।
ॐ ह्रीं श्रीं उत्तम क्षमा धर्म अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री उत्तम क्षमा धर्म अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठःस्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री उत्तम क्षमा धर्म अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् । (११) स. सा. १५५-जीवादि पदार्थों का श्रिदान सम्यक दर्शन है।