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जैन पूजांजलि
संयम के बिन यह भव प्राणी हो सकता है मुक्त नहीं । संयम बिन कैवल्य लक्ष्मी से हो सकता युक्त नहीं ॥
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सन्देश भरा ।
उपदेश भरा ॥
समयसार में निश्चय नय का पावन मय श्री पंचास्तिकाय को रचकर द्रव्य तत्व प्रवचन सार बनाया तुमने भेदज्ञान को बतलाया । मूलाचार लिखा मुनि जन हित साधु मार्ग को दर्शाया ॥ नियमसार की रचना श्रनुपम रयणसार गूंथा चितलाय । लघु सामायिक पाठ बनाया लिखा सिद्ध प्राभृत सुखदाय ॥ श्री अष्ट पाहुड़ षट्प्राभृत द्वादशानुप्रेक्षा के बोल । चौरासी पाहुड लिक्खे जो ज्ञात नहीं हमको अनमोल || ताड़ पत्र पर लिखे ग्रन्थ सब सफल हुई चिर अभिलाषा । जन जन को वारणी कल्याणी धन्य हुई प्राकृत भाषा ॥ जीवों के प्रति करुणा जागी मोक्ष मार्ग उपदेश दिया । और तपस्या भूमि बनाकर गिरि कुन्दाद्रि पवित्र किया || अमृतचन्द्राचार्य देव की टीका श्रात्म ख्याति विख्यात । पद्मप्रभ मलधारि देव को टीका नियमसार प्रख्यात ॥ श्री जयसेनाचार्य रचित तात्पर्य वृत्ति टीका पावन । श्री कानजी स्वामी के भी अनुपम समयसार प्रवचन ॥ पद्मनन्दि गुरु वत्रग्रीव मुनि ऐलाचार्य श्रापके नाम । गृद्धपृच्छ प्राचार्य यतीश्वर कुन्द कुन्द हे गुरण के धाम ।। हे प्राचार्य प्रापके गुण वर्णन करनेकी मुझमेंशक्ति नहीं । पथ पर चलें श्रापके ऐसी भी तो श्रमी विरक्ति नहीं ॥ भक्ति विनय के सुमन तुम्हारे चरणों में भव्य भावना यही एक दिन मैं सर्वज्ञ बनूं स्वयमेव ॥
प्रपित हैं देव ।