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जैन पूर्जाजलि
मिथ्यात्व बंध गति गति के करता है। सम्यक्त्व बंध गति गति के हरता है ॥
७ जयमाला 8 जय जय जय प्रकार दिव्य ध्वनि योगीजन नित करने ध्यान । मोह तिमिर मिथ्यात्व विनाशक ज्ञान प्रकाशक सूर्य समान ॥ वस्तु स्वरूप प्रदर्शक निज पर भेद ज्ञान की ज्योति महान । सप्तभङ्ग, स्याहाद नयाश्रित द्वादशांग श्रुत ज्ञान प्रमाण ॥ द्वादश अंग पूर्व चौदह परिकर्म सूत्र से शोभित है । पंच चूलिका चौ अनुयोग प्रकीर्णक चौदह मूषित है ॥ जय जय प्राचारांग प्रथम जय सूत्रकृतांग द्वितीय नमन । स्थानांग तृतीय नमन जय चौथा समवायांग नमन ।। जय व्याख्या प्रजस्ति पांचवा षष्टम् ज्ञातधर्मकथांग । उपासकाध्ययनांग सातवां अष्टम् अंतःकृतदशांग ॥ अनुत्तरोत्पादकदशांग नौ प्रश्न व्याकरणग्रङ्ग दशम् । जय विपाक सूत्रांग ग्यारहवाँ दृष्टिवाद द्वादशम् परम ॥ दृष्टिवाद के चौदह भेद रूप है चौदह पूर्व महान् । ग्यारह अङ्ग पूर्व नौ तक का द्रव्य लिगि कर सकता ज्ञान ॥ पहला है उत्पाद पूर्व दूजा अग्रायणीय नानो । तीजा है वीर्यानुवाद चौथा है अस्ति नास्ति नानो॥ पंचम ज्ञानप्रवाद कि षष्टम् सत्यप्रवाद पूर्व जानो। सप्तम् प्रात्म प्रवाद, आठवाँ कर्मप्रवाद पूर्व मानो ॥ नवमा प्रत्याख्यानप्रवाद सु दशवॉ विद्युनुवाद जान । ग्यारहवाँ कल्याणवाद बारहवाँ प्राणानुवाद महान ॥ तेरहवां क्रियाविशाल चौदहवाँ लोकबिन्दु है सार । प्रङ्ग प्रविष्ट अरु अङ्ग बाह्य के भेद प्रभेद सदा सुखकार ॥