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जैन पूजांजलि
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श्रद्धा की वंदनवारें जिनमें विवेक की लड़ियाँ ।
संशय का लेश न किन्चित आई अनुभव की घड़ियाँ। यह प्राधि व्याधि पर की उपाधि भव भ्रमण बढ़ाती आई है। अक्षय अखंड निज की समाधि अब तक न कभी भी पाई है।।मैं०
ॐ ह्रीं श्रीं जिन मुखोद्भव सरस्वती देव्यै अक्षतम् नि० स्वाहा। एकत्व बुद्धि करके पर में कर्तापन का अभिमान किया। मैं निज का कर्ता भोक्ता है ऐसा न कभी भी भान किया ॥मैं० __ ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भव सरस्वती देव्यै पुष्पम् नि० स्वाहा। यह माया अनन्तानुबन्धी कषाय प्रति समय जाल उलझाती है । चारों कषाय को यह तृष्णा उलझन न कभी सुलभाती है । मैं०
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भव सरस्वती देव्यै नैवेद्यम् नि० स्वाहा। तत्त्वों के सम्यक् निर्णय बिन श्रद्धा को ज्योति न जल पाई। प्रज्ञान अन्धेरा हटा नहीं सन्मार्ग न देता दिखलाई ॥ मैं०
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोदभव सरस्वती देव्यै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा । होकर अनन्त गुण का स्वामी, पर का ही दास रहा अब तक। निज गुण को सुरभि नहीं भाई भव दधि में कष्ट सहा अब तक ॥मैं० ___ ॐ ह्रीं श्री जिन मुग्वोद्भव सरस्वती देव्यै धूपम् नि० म्वाहा। मैं तीन लोक का नाथ पुण्य धूला के पीछे पागल हूँ। चिन्तामणि रत्न छोड़कर मैं रागों में प्राकुल-व्याकुल हूँ॥ ___ ॐ ह्रीं श्री जिन'मुखोदभव सरस्वती देव्यै मोक्षफल प्राप्ताय फलम् नि। अब तक का जितना पुण्य शेष हर्षित हो अर्पण करता हूँ। अनुपम अनर्घ पद पा जाऊँ मैं यही भावना भरता हूँ। मैं श्री जिनवाणी चरणों में मिथ्यातम हरने पाया हूँ। श्री महावीर की दिव्य ध्वनि हृदयंगम करने पाया हूँ ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भव सरस्वती देव्यै अर्घन निर्वपामीति स्वाहा।