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जैन पूजांजलि
राग पर का छूट जाए तो स्वयं का भान हो । ध्रुव अचल अनुपम स्वगति पा स्वयं ही भगवान हो।
अष्ट कर्म को क र प्रकृतियों में ही निज को उलझाया। परम पारिणामिक स्वभाव को सजल धूप पाने पाया॥ अष्टा०
ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय अष्ट कर्म विध्वंसनाय धूपम् नि० । मोक्ष प्राप्ति के बिना अाज तक सुख का एक न करण पाया। परम पारिणामिक स्वभाव के शिवमय फल पाने आया । अष्टा० ___ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय मोक्ष फल प्राप्ताय फलम् नि । शुद्ध त्रिकाली अपना ज्ञायक प्रात्म स्वभाव न दर्शाया। परम पारिणामिक स्वभाव से पद अनर्घ पाने पाया ॥ अष्टापद सम्मेद शिखर, चम्पापुर, पावापुर, गिरनार । चौबीसों तीर्थङ्कर को निर्वाण भूमि वन्दू सुखकार ॥ ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय पूर्णार्धम् नि ।
जयमाला 8 श्री चौबीस जिनेश को वन्दन करूं त्रिकाल । तीर्थङ्कर निर्वाण भू हरे कर्म जंजाल ॥ अष्टापद कैलाश आदि प्रभु ऋषभदेव पद करू प्रणाम। चम्पापुर में वासुपूज्य जिनवर के पद वन्दू अभिराम ॥ उजयन्त गिरनार शिखर पर नेमिनाथ पद में वन्दन । पावापुर में वर्धमान प्रभु के चरणों को करू नमन ॥ बीस तीर्थङ्कर सम्मेदाचल के पर्वत पर वन्दू । बीस टोंक पर बोस जिनेश्वर सिद्ध भूमि को अभिनन्दू॥ कूट सिद्धवर अजितनाथ के चरण कमल को नमन करूं। धवल कूट पर सम्भव जिन पद पूजं निज का मनन करूं।