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________________ ११८] जैन पूजांजलि राग पर का छूट जाए तो स्वयं का भान हो । ध्रुव अचल अनुपम स्वगति पा स्वयं ही भगवान हो। अष्ट कर्म को क र प्रकृतियों में ही निज को उलझाया। परम पारिणामिक स्वभाव को सजल धूप पाने पाया॥ अष्टा० ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय अष्ट कर्म विध्वंसनाय धूपम् नि० । मोक्ष प्राप्ति के बिना अाज तक सुख का एक न करण पाया। परम पारिणामिक स्वभाव के शिवमय फल पाने आया । अष्टा० ___ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय मोक्ष फल प्राप्ताय फलम् नि । शुद्ध त्रिकाली अपना ज्ञायक प्रात्म स्वभाव न दर्शाया। परम पारिणामिक स्वभाव से पद अनर्घ पाने पाया ॥ अष्टापद सम्मेद शिखर, चम्पापुर, पावापुर, गिरनार । चौबीसों तीर्थङ्कर को निर्वाण भूमि वन्दू सुखकार ॥ ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय पूर्णार्धम् नि । जयमाला 8 श्री चौबीस जिनेश को वन्दन करूं त्रिकाल । तीर्थङ्कर निर्वाण भू हरे कर्म जंजाल ॥ अष्टापद कैलाश आदि प्रभु ऋषभदेव पद करू प्रणाम। चम्पापुर में वासुपूज्य जिनवर के पद वन्दू अभिराम ॥ उजयन्त गिरनार शिखर पर नेमिनाथ पद में वन्दन । पावापुर में वर्धमान प्रभु के चरणों को करू नमन ॥ बीस तीर्थङ्कर सम्मेदाचल के पर्वत पर वन्दू । बीस टोंक पर बोस जिनेश्वर सिद्ध भूमि को अभिनन्दू॥ कूट सिद्धवर अजितनाथ के चरण कमल को नमन करूं। धवल कूट पर सम्भव जिन पद पूजं निज का मनन करूं।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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