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जैन पूजांजलि
अगर जगत में सुख होता तो तीर्थङ्कर क्यों इसको पुण्यो का आनंद छोड़कर निज स्वभाव चेतन क्यो
तजते ।
भजते ॥
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बन्दू ॥
कमल ।
मैं श्रानन्द कूट पर अभिनन्दन स्वामी को करू नमन । अविचल कूट सुमति जिनवर के पद कमलों में है वन्दन ॥ मोहन कूट पदम प्रभु के चरणों में सादर करू नमन । कूट प्रभास सुपार्श्वनाथ प्रभु के मैं पूजूं भव्य चरन ॥ ललित कूट पर चन्दा प्रभु को भाव सहित सादर बन्बू । सुप्रभ कूट सुविधि जिनवर श्री पुष्पदन्त पद अभिनन्दू ॥ विद्युत कूट श्री शीतल जिनवर के चरण कमल पावन । संकुल कूट चरण श्रेयांसनाथ के पूजूं मनभावन ॥ श्री सुवीर कुल कूट भाव से विमलनाथ के पद बन्दू । चरण अनन्तनाथ स्वामी के कूट स्वयंभू पर कूट सुदत्त पूजता हूँ मैं धर्मनाथ के चरण नमू कुन्द प्रभु कूट मनोहर शान्तिनाथ के चरण विमल ॥ कुन्थुनाथ स्वामी को बन्दू कूट ज्ञान धर भव्य महान । नाटक कूट श्री अरहनाथ जिनेश्वर पद का ध्याऊँ ध्यान ॥ संबल कूट मल्लि जिनवर के निर्जर कूट श्री मुनि सुव्रत चरण पूजकर हर्षाऊं ॥ कूट मित्र घर श्री नेमिनाथ तीर्थङ्कर पद करूं प्रणाम । स्वर्ण भद्र श्री पार्श्वनाथ प्रभु को नित बन्दू भ्राठों याम ॥ तीर्थङ्कर निर्वारण भूमियाँ तीर्थ क्षेत्र कहलाती हैं । मुनियों को निर्वाण भूमियाँ सिद्ध क्षेत्र कहलाती हैं ॥ गर्भ जन्म तप ज्ञान भूमियाँ अतिशय क्षेत्र कहलाती हैं । इन सब तीर्थों की यात्रा से उर पवित्रता प्राती है ॥ अपना शुद्ध स्वभाव लक्ष्य में लेकर जो निज ध्यान धरू सादि ग्रनन्द समाधि प्राप्त कर परम मोक्ष निर्धारण वरूं ॥
चरणों की महिमा गाऊँ ।
ॐ ह्री श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय पूर्णार्घम् निर्वपामीति स्वाहा ।