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जैन पूजजिलि
भावना भवनाशिनी ।
मोह भ्रम अज्ञानवश यह आत्मा भव वासिनी ॥
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ऋषभादिक चौबीस जिनेश्वर मुक्ति वधू के कंत हुए । पंच तीर्थों से तीर्थङ्कर परम सिद्ध भगवन्त हुए || ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्र अत्र अवतर अतवर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्र अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् । जन्म मरण से व्यथित हुआ हूं भव प्रनादि से दुख पाया । परम पारिणामिक स्वभाव का निर्मल जल पाने आया ॥ भ्रष्टापद सम्मेद शिखर, चम्पापुर, पावापुर, चौबीसों तीर्थङ्कर की निर्वाण भूमि वन्दू
गिरनार । सुखकार ॥
ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
भव श्रातप से दग्ध हुआ मैं प्रतिपल दुख प्रनन्त पाया । परम पारिणामिक स्वभाव का निज चन्दन पाने श्राया ॥ अष्टा० ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय संसारताप विनाशनाय चन्द्रनम् fito भव समुद्र में चहुँ गति को भंवरों में डूबा उतराया । परम पारिणामिक स्वभाव से अक्षय पद पाने आया || अष्टाo ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् नि० । काम भोग बन्धन में पड़कर शील स्वभाव नहीं पाया। परम पारिणामिक स्वभाव के सहज पुष्प पाने प्राया ॥ अष्टा० ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि० I तृष्णा की ज्वाला में जल जल तृप्त नहीं मैं हो पाया । परम पारिणामिक स्वभाव के शुचिमय चरु पाने श्राया ॥ श्रष्टा० ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि० । सम्यक् ज्ञान बिना प्रभु अब तक निज स्वरूप ना लख पाया । परम पारिणामिक स्वभाव की दीप ज्योति पाने श्राया ॥ अष्टा० ॐ ह्रीं श्री तीर्थङ्कर निर्वाण क्षेत्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि० ।
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