________________
११६]
जैन पूजांजलि
दर्शन ज्ञान चरित्र नियम है, जो कि नियम से करने योग्य । कारण नियम त्रिकाल शुद्ध ध्रुव, सहज स्वभाव आश्रय योग्य ।।
कार्तिक कृष्ण अमावस प्रातः महावीर निर्वाण हुआ। सन्ध्याकाल तुम्हें भी पावापुर में केवल ज्ञान हुआ । ज्ञान लक्ष्मी तुमने पाई और वीर प्रभु ने निर्वाण । दीप मालिका पर्व विश्व में तभी हुमा प्रारंभ महान ।। आयु पूर्ण जब हुई आपको योग नाश निर्वाण लिया। धन्य हो गया क्षेत्र गुणावा देवों ने जयगान किया ॥ आज तुम्हारे चरण कमल के दर्शन पाकर हर्षाया। रोम रोम पुलकित है मेरे भव का अन्त निकट प्राया ॥ मुझको भी प्रज्ञा छनी दो मैं निज पर में भेव करूं। भेद ज्ञान की महाशक्ति से दुखदायी भव खेद हरू॥ पद सिद्धत्व प्राप्त करके मैं पास तुम्हारे आ जाऊँ । तुम समान बन शिव पद पाकर सदा सदा को मुस्काऊं। जय जय गौतम गणधर स्वामी अभिरामो अन्तरयामी। पाप पुण्य पर भाव विनाशी मुक्ति निवासी सुखधामी । ॐ ह्रीं श्री गीतम गणधर स्वामिने अनर्घ पद प्राप्ताय अर्घम् नि० । गौतम स्वामी के वचन भाव सहित उर धार । मन, वच, तन जो पूजते वे होते भव पार ॥
४ इत्याशीर्वादः जाप्य- ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधराय नमः ।
- :श्री तीर्थ कर निर्वाण क्षेत्र पूजन अष्टापद कैलाश श्री सम्मेदाचल चम्पापुरधाम । उर्जयंत गिरनार शिखर पावापुर सबको करूं प्रणाम ॥