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जैन पूजांजलि
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एक दिन भी जी मगर तू ज्ञान बन कर जी।
तु स्वयं भगवान है भगवान वन कर जी॥ रत्नत्रय का परम मोक्ष फल पाने को फल भेंट करूं । शुद्ध स्वपद निर्वाण प्राप्त कर मैं अनादि भव रोग हरू ॥गौतम०
ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने मोक्ष फल प्राप्ताय फलम् नि । जल फलादि वसु द्रव्य अर्घ चरणों में सविनय भेंट करूं। पद अनर्घ सिद्धत्व प्राप्त कर मैं अनादि भव रोग हरू। गौतम गणधर स्वामी के चरणों की मैं करता पूजन । देव आपके द्वारा भाषित जिनवाणी को करू नमन ॥ ___ ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने अनर्घ पद प्राप्ताय अर्घम् नि । श्रावण कृष्णा एकम् के दिन समवशरण में तुम आये । मानस्तम्भ देखते ही तो मान, मोह अघ गल पाये। महावीर के दर्शन करते ही मिथ्यात्व हुंपा चकचूर । रत्नत्रय पाते ही दिव्य ध्वनि का लाभ लिया भरपूर ॥
ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने दिव्यध्वनि प्राप्ताय अर्घम् नि। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को कर्म घातिया करके क्षय । सायङ्काल समय में पाई केवल ज्ञान लक्ष्मी जय ।। ज्ञानावरण दर्शनावरणी मोहनीय का करके अन्त । अन्तराय का सर्वनाश कर तुमने पाया पद भगवन्त ॥ ___ ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने केवल ज्ञान प्राप्ताय अर्घम् नि । विचरण करके दुखी जगत् के जीवों का कल्याण किया। अन्तिम शुक्ल ध्यान के द्वारा योगों का अवसान किया । देव बानवे वर्ष अवस्था में तुमने निर्वाण लिया । क्षेत्र गुणावा करके पावन सिद्ध स्वरूप महान् लिया ।
ॐ ह्रीं श्री गौतम गणवर स्वामिने मोक्ष पद प्राप्ताय अर्घम् नि ।