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जैन पूजांजलि
अपने स्वरूप में रहता तो यह प्राणी परमेश्वर होता । ज्ञायक स्वभाव के आश्रय से यह जीव स्वभावेश्वर होता ।। मैं मिथ्यात्व नष्ट करने को निर्मल जल की धार करूँ । सम्यक् दर्शन पाऊँ जन्म मरण क्षय कर भव रोग हरु || गौतम गणधर स्वामी के चरणों की मैं करता पूजन । देव आपके द्वारा भाषित जिनवाणी को करूँ नमन ॥
विनाशनाय जलम्
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ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने जन्म जरा मृत्यु निर्वपामीति स्वाहा |
पंच पाप अविरति को त्यागूँ शीतल चन्दन चरण धरू । भव प्रताप नाश करके प्रभु मैं अनादि भव रोग हरू ॥ गौतम
ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने संसारताप विनाशनाय चन्दम् नि० । पंच प्रमाद नष्ट करने को उज्ज्वल प्रक्षत भेंट करूँ । प्रक्षय पद की प्राप्ति हेतु प्रभु मैं अनादि भव रोग हरू ॥ गौतम ०
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ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् नि० चार कषाय अभाव हेतु मैं पुष्प मनोरम भेट करू । काम वाण विध्वंस करू प्रभु मैं श्रनादि भव रोग हरू ॥ गौतम ० ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने काम वाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि० मन वच काया योग सर्व हरने को प्रभु नैवेद्य धरूं । व्याधि का नाम मिटाऊ मैं अनादि भव रोग हरू ॥ गौतम ० ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि० । सम्यक् ज्ञान प्राप्त करने को अन्तर दीप प्रकाश करूं । चिर अज्ञान तिमिर को नाशँ मैं अनादि भव रोग हरु | गौतम ० ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि० ।
क्षुधा
मैं
सम्यक् चारित्र ग्रहण कर अन्तर तप की धूप वरू 1 भ्रष्ट कर्म विध्वंस करू प्रभु मैं अनादि भव रोग हरु ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिने अष्ट कर्म विनाशनाय
| गौतम ०
धूपम् नि०
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