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जैन पूजांजलि
अन्तर्जल्पों में जो उलझा निज पद न प्राप्त कर पाता है । संकल्प विकल्प रहित चेतन निज सिद्ध स्वपद पा जाता है ॥
रहूं ।
त्रैकालिक ज्ञायक स्वभाव का आश्रय लेकर बढ़ जाऊँ । शुद्धात्मानुभूति के द्वारा मुक्ति शिखर पर चढ़ जाऊँ ॥ मोक्ष लक्ष्मी को पाकर भी निजानन्द रसलीन सादि श्रनन्त सिद्ध पद पाऊँ सदा सुखी स्वाधोग प्राज आपका रूप निरखकर निज स्वरूप का तुम सम बने भविष्यत् मेरा यह दृढ़ निश्चय हर्ष विभोर भक्ति से पुलकित होकर की है यह प्रभु पूजन का सम्यक् फल हो करें हमारे भव चक्रवति इन्द्रादिक पद की नहीं कामना है स्वामी । शुद्ध बुद्ध चैतन्य परम पद पायें हे अन्तरयामी ॥ ॐ ह्रीं श्री जिन बाहुबली स्वामिने अनर्घ पद प्राप्ताय अर्घ्यम् नि० । घर घर मङ्गल छाये जग में वस्तु स्वभाव धर्म जानें । वीतराग विज्ञान ज्ञान से शुद्धातम को पहिचानें ॥
जाप्य
इत्यार्शीवादः
ॐ ह्रीं श्री बाहुबली जिनाय नमः ।
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भान
ज्ञान
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श्री गौतम स्वामी पूजन
रहूं ॥
हुआ ।
हुआ ॥
पूजन ।
बन्धन ||
जय जय इन्द्र भूति गौतम गणधर स्वामी मुनिवर जय जय । तीथंङ्कर श्री महावीर के प्रथम मुख्य गणधर जय जय ॥ द्वादशाङ्ग श्रुत पूर्ण ज्ञानधारी गौतम स्वामी जय जय । वीर प्रभु की दिव्यध्वनि जिनवाणी को सुन हुए श्रभय ॥ ऋद्धि सिद्धि मङ्गल के दाता मोक्ष प्रदाता गणधर देव । मङ्गलमय शिव पथ पर चलकर मैं भी सिद्ध बनूं स्वयमेव ॥
ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिन् अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री गौतम गणधर स्वामिन् अत्र मम् सन्निहितोभव भव वषट् ।