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जैन पूजांजलि
धर्म को आज तक हमने जाना नहीं । राग की रागिनी हम बजाते रहे ॥
_ जयमाला x मगध देश के गौतमपुर वासी वसु भूति ब्राह्मण पुत्र । माँ पृथ्वी के लाल लाड़ले इन्द्र भूति तुम ज्येष्ठ सुपुत्र ॥ अग्नि भूति, अरु वायु भूति लघु भ्राता द्वय उत्तम विद्वान। शिष्य पाँच सौ साथ आपके चौदह विद्या ज्ञान निधान । शुभ बैसाख शुक्ल दशमी को हुआ वीर को केवल ज्ञान । समवशरण की रचना करके हुआ इन्द्र को हर्ष महान ॥ बारह सभा बनी अति सुन्दर गन्ध कुटी के बीच प्रधान । अन्तरक्षि में महावीर प्रभु बैठे पद्मासन निज ध्यान ॥ छयासठ दिन हो गये दिव्य ध्वनि खिरी नहीं प्रभु की यह जान। अवधि ज्ञान से लखा इन्द्र ने "गणधर की है कमी प्रधान" ॥ इन्द्रभूति गौतम पहले गणघर होंगे यह जान लिया। बुद्ध ब्राह्मण वेश बना, गौतम के गृह प्रस्थान किया । पहुँच इन्द्र ने नमस्कार कर किया निवेदन विनयमयी। मेरे गुरु श्लोक सुनाकर, मौन हो गये ज्ञानमयो । अर्थ भाव वे बता न पाये वही जानने आया हूँ। पाप श्रेष्ठ विद्वान् जगत में शरण पापको प्राया हूँ॥ इन्द्रभूति गौतम श्लोक श्रवण कर मन में चकराये । भूठा अर्थ बताने के भी भाव नहीं उर में आये ॥ मन में सोचा तीन काल, छै द्रव्य, जीव, षट् लेश्या क्या? नव पदार्थ, पंचास्ति काय,गति,समिति, ज्ञान,व्रत,चारित क्या? बोले गुरु के पास चलो मैं वहीं अर्थ बतलाऊंगा। अगर हुआ तो शास्त्रार्थ कर उन पर भी जय पाऊंगा ॥