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जैन पूजांजलि
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जोवन दृश्य बदल जाएगा, जब देखेगा निज की ओर । अघ के बादल विघट जाएंगे, हो जाएगी समकित भोर ॥
पाऊँ अनर्घ पद देव अविनश्वर अवचल । अविकारी अमल अनूप अजर अमर अविकल ॥हे वर्धमान. ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ्यम् नि० ।
श्री पंच कल्याणक षष्ठी शुक्ल अषाढ़ की, हुई पवित्र महान । त्रिशला मां उर अवतरे, हुआ गर्भ कल्याण ॥ ॐ ह्रीं आषाढ़ शुक्ल षष्ठयाम् गर्भ मङ्गल मण्डिताय श्री वर्धमान
जिनेन्द्राय अर्घम् नि० स्वाहा । शुक्ल त्रयोदशि चैत्र की हुमा जन्म कल्याण । गिरि सुमेरु पर इन्द्र ने उत्सव किया महान ।। ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम् जन्म मंगल मंडिताय श्री वर्धमान
जिनेन्द्राय अर्घ्यम् नि० । दशमी मगसिर कृष्ण की पावन तप कल्याण । भव तन भोग विरक्त हो लिया महाव्रत यान ॥ ॐ ह्रीं मार्गशीर्ष कृष्ण दश्याम् तपो मङ्गल मण्डिताय श्री वर्धमान
जिनन्द्राय अर्घ्यम नि० स्वाहा। शुक्ल दशम् वैशाख की पाया केवल ज्ञान । घाति कर्म क्षय कर हुए श्री प्ररहंत महान ॥ ॐ ह्रीं वैशाख शुक्ल दश्याम् ज्ञान मङ्गल मण्डिताय श्री वर्धमान
जिन द्राय अर्घम नि० स्वाहा । कृष्ण अमावस कार्तिकी ध्याया अन्तिम ध्यान । प्रष्ट कर्म अवसान कर हुए सिद्ध भगवान ।। ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम् मोक्ष मङ्गल मंडिताय श्री वर्धमान
जिनेन्द्राय अर्घम् नि० स्वाहा ।