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जैन पूजांजलि धर्म ध्यान का क्रिया आचरण, अगर प्रशंसा के हित तो अज्ञानी जन को ठगने, में तू हआ दत्त चित
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हे वर्धमान भगवान तुम पद ध्याता हूँ । हो जाऊं आप समान मन में भाता हूँ ॥ ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं
निर्वपामीति स्वाहा। चिर शीतलता के हेतु लाया हूं चंदन । हो आत्म शक्ति से नष्ट चहुँगति का क्रन्दन ॥ हे वर्धमान० ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय संसार ताप विनाशनाय चन्दनम् नि । शुभ अशुभ विकार विभाव आश्रव दुखदायक । हे शुद्ध भाव ही सार अक्षय सुख दायक ॥ हे वर्धमान० ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये नि० स्वाहा। दुखदायो मदन अनंग इसका गर्व हरू । सुखदायी शील अभंग हे प्रभु प्राप्त करूं ॥ हे वर्धमान० ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि० । जग के वैभव को भूख पर प्रब जय पाऊँ । तृष्णाओं का कर अंत निज वैभव ध्याऊँ ॥ हैं बर्धमान० ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि । सम्यक् प्रकाश से मोह मिथ्यातम भागे । अंतर में हो आलोक केवल रवि नागे ॥ हे वर्धमान ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि । पाठों ही कर्म विचित्र भव भव दुखकारी । हों ध्यान अग्नि में नष्ट लूं पब सुखकारी ॥ हे वर्धमान ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अष्ट कर्म विध्वंसनाय घपम् नि० । निर्वाण महाफल हेतु शुभफल ध्वान्त करूं । यह पुण्य पाप को प्राग हे प्रभु शान्त करूं । हे वर्धमान० ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलम् नि० स्वाहा ।