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जैन पूजांजलि जिस दिन तू मिथ्यात्व भाव को कर देगा पूरा विध्वंस । प्रकट स्वरूपाचरण करेगा पाकर पूर्ण ज्ञान का अंश ।
जयमाला 8 सुत सिद्धार्थ, जिनेश को वन्दू वारम्वार ।
वीतराग विज्ञान पा करूं प्रात्म उद्धार ॥ जय जय वर्धमान जिन स्वामी। महावीर प्रभु अंतर्यामी॥ जय अतिवीर वीर गुणधामी। वैशालिक सुवीर शिवनामी॥ चय जय सन्मति सन्मतिदाता । जय जगदीश्वर दृष्टाज्ञाता॥ जय सर्वेश मोक्ष सुखकारी। जय जिनेन्द्र जय दुर्गति हारी॥ बाल ब्रम्हचारी भवतारी । है त्रिकाल वन्दना हमारी ॥ चार कम घनघाति निवारक । अष्ट कर्म प्ररि के संहारक । स्वपर प्रकाशक केवल ज्ञानो। ध्यान ध्येय ध्याता विज्ञानी ॥ चिदानंद चैतन्य विलासी । मंगल मय चेतन अविनाशी ॥ निज स्वभाव साधन के द्वारा। स्वयं तरे पौरों को तारा॥ राग मात्र को हेय बताया। शुद्धातम ही श्रेय जताया ॥ भवतन भोग रोग अघनाशं । निज स्वरूप चैतन्य प्रकाशं ॥ पाप पुण्य आश्रव विनशाऊँ । संवर भाव सहज प्रगटाऊँ ॥ वस्तु स्वरूप करू हृदयंगम । तत्त्व भावना भाऊ हरदम ॥ निन शुदात्मतत्त्व को जानू । सर्वोत्कृष्ट स्वपद पहचानू ।। अब मैं सम्यक दर्शन पाऊँ । सम्यक् ज्ञान सहन उरलाऊं। सम्यक् चारित को विकसाऊँ। मोक्षमार्ग पर मैं माजाऊँ ॥ एक शुद्ध परिपूर्ण त्रिकाली । नायक मैं अनंत गुणशाली। सर्व कषाय भाव जय करलोमोहक्षीण कर निज पद बरलूं ॥ प्रभ पूजन का यह फल पाऊं फिर न लौटकर भव में आऊँ। यही विनय है त्रिभुवन नामी । तुम समान बन जाऊँ स्वामी। ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय महाय॑म् निर्वपामीति स्वाहा।