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जैन पूजांजलि
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बैराग्य घटा घिर आई चमकी निजत्व की बिजली । अब जिय को नहीं सहाती पर के ममत्व की कजली ।।
सात तत्त्व को श्रद्धा करके जो भी समकित धरते हैं। रत्नत्रय का अवलम्बन ले मुक्ति वधू को बरते हैं। सम्मेदाचल के पावन पर्वत पर आप हुए प्रासीन । कूट कुन्दप्रभ से प्रघातिया कर्मों से भी हुए विहीन ॥ महा मोक्ष निर्वाण प्राप्त कर गुण अनन्त से युक्त हुए। शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध सिद्ध पद पाया भव से मुक्त हुए। हे प्रभु शान्तिनाथ मङ्गलमय मुझको भी ऐसा वर दो। शुद्ध प्रात्मा का प्रतीति मेरे उर में जाग्रत कर दो। पाप, ताप सन्ताप नष्ट हो जाये सिद्ध स्वपद पाऊँ । पूर्ण शान्तिमय शिव सुख पाकर फिर न लौट भव में पाऊँ।
ॐ ह्रीं श्री शानिनाथ जिनेन्द्राय महार्ण्यम् नि स्वाहा । चरणों में मृग चिह्न सुशोभित शान्ति जिनेश्वर का पूजन ।। भक्ति भाव से जो करते हैं वे पाते हैं मुक्ति गगन ॥
४ इत्याशीर्वादः ॐ ह्री श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय नमः ।
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__ श्री नेमिनाथ पूजन जय श्री नेमिनाथ तीर्थङ्कर बाल ब्रह्मचारी भगवान । हे जिनराज पर उपकारी करुणा सागर दया निधान ।। दिव्यध्वनि के द्वारा हे प्रभु तुमने किया जगत कल्याण । श्री गिरनार शिखर से पाया तुमने सिद्ध स्वपद निर्वाण ॥ आज तुम्हारे दर्शन करके निज स्वरूप का प्राया ध्यान । मेरा सिद्ध समान सदा पद यह दृढ़ निश्चय हुआ महान ॥
ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर अतवर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम् सन्निहितो भव भव वपट् ।
जाप्य