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जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल
सामाधिको पारिणामिकौ च " । ( तत्त्वार्थ सूत्र ५। ३६ ) के सिवा अन्य नियम हमारे लक्ष्य में अभी नही आये है । परिणमन से जो पौद्गलिक विचित्रता उत्पन्न होती है उसके नियम जरूर होने चाहिएँ, क्योकि जैन का जगत् सुनियंत्रित है, विश्वखलित ( choas ) रूप नही । आधुनिक विज्ञान को भी पारिणामिक कलातो के नियम उपलब्ध नही हुए हैं। उदाहरण --- ऑक्सीजन तथा हाईड्रोजन गैसो के वन्व को प्राप्त होने से फलान्त परिणाम पानी होता है । ऑक्सीजन तथा हाईड्रोजन की प्रापरटीज (गुण) फलान्त पानी की प्रापर्टीज (गुणो ) से विल्कुल भिन्न है । वन्वन प्राप्त होकर पूर्व गुणो से विचित्र - विभिन्न गुणों में यह परिणमन किन नियमो से होता है, इस प्रश्न का उत्तर अभी तक हमारे लक्ष्य में जैन - शास्त्रो में नही आया है तथा प्राधुनिक-विज्ञान को भी इस फलान्त परिणमन के नियम नही मिले है |
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